भारत व पाकिस्तान के बीच शांतिकाल में भी मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक युद्ध चलता रहता है। ऐसे ही एक ‘कूटनीतिक युद्ध’ में भारत के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारी को भरी सभा में चुप कर दिया था। मजे की बात यह थी कि चुप भी उस उर्दू भाषा में किया, जो पाक की आधिकारिक भाषा है।
किस्सा उस दौर का है, जब भारत ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को जबरदस्त पटखनी देते हुए हथियार डालने को मजबूर कर दिया था। तब पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने अपने कमांडर के साथ आत्मसमर्पण किया
था। भारत ने इन्हें तब बंदी बना लिया था। युद्ध समाप्त हुए कुछ समय बीता तो पाकिस्तान ने भारत के पास युद्धबंदी के रूप में कैद अपने सैनिकों को छुड़ाने का प्रयत्न शुरू किया।
इस बीच अंतरराष्ट्रीय ताकतें भी सक्रिय हुईं और उन्होंने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व पाकिस्तान के प्रमुख जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच बातचीत करवाने की कोशिशें शुरू कीं। अंततः कोशिशें कामयाब हुईं और इन दोनों नेताओं के मिलने से पहले भारत-पाक के वरिष्ठअधिकारियों का मिलना तय हुआ।
भारत की ओर से डीपी धर तथा पाक की ओर से अजीज अहमद बातचीत के लिए साथ बैठे। बातचीत की भाषा अंग्रेजी थी, किंतु अजीज अंग्रेजी में थोड़े असहज थे। इस पर अजीज ने यह सोचकर उर्दू में अपनी बात कहना शुरू की कि डीपी धर ठीक से उर्दू समझ नहीं पाएंगे और उलझकर रह जाएंगे।
मगर धर ने सबको चौंकाते हुए ऐसी शुद्ध उर्दू बोलना शुरू की कि खुद अजीज सकपका गए और वैसी खालिस उर्दू वे भी नहीं समझ सके। दरअसल, डीपी धर की उर्दू कश्मीर क्षेत्र में बोली जाने वाली उर्दू थी, जो सामान्य से कहीं
उच्च होती थी। अंततः अजीज को खुद कहना पड़ा कि वे अंग्रेजी में बातचीत के लिए तैयार हैं।
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