पूर्णिमा स्नान पर हरकी पैड़ी तथा अन्य घाटों पर स्नान का श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। कुशावर्त घाट पर यज्ञोपवीत सहित कई संस्कार कराए गए। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के साथ- साथ राजस्थान, यूपी, पंजाब और दिल्ली से भी श्रद्धालु गंगा स्नान को यहां पहुंचे। हर की पैड़ी पर ब्रह्म मुहूर्त से ही श्रद्धालु स्नान शुरू हो गया था। बाजारों में भी भीड़ बनी हुई है। श्रद्धालुओं ने कुशावर्त घाट जाकर कर्णभेदन संस्कार, मुंडन संस्कार, श्राद्ध तर्पण एवं यज्ञोपवीत संस्कार संपन्न कराए।
देशभर से काफी संख्या में श्रद्धालु कर्मकांड कराने के लिए हरिद्वार पहुंचे। श्रद्धालुओं ने मिष्ठान्न के साथ साथ मूंगफली, गूड़, तिल, तिल के लड्डू तथा मकई से बने पदार्थों का भी दान किया।
श्रद्धालुओं ने हर की पैड़ी पर भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य देकर पूजा अर्चना की। मकर संक्रांति के बाद के पहले इस बड़े स्नान पर ताप बढ़ाने के निमित्त कई जगह अग्नि प्रज्ज्वलित कर यज्ञों का आयोजन किया गया। इसके साथ ही अनेक प्रकार के मांगलिक पर्व धर्मनगरी में मनाए गए। पूर्णिमा स्नान को हरकी पैड़ी, मालवीय द्वीप, सुभाषघाट, रोड़ीबेलवाला आदि पर भारी भीड़ लगी रही।
गंगा स्नान का महत्व
शास्त्रों के अनुसार जब व्यक्ति गंगा की तरफ एक कदम गंगा स्नान के लिए जाता है तो शिव पुराण में वर्णन आया है कि उस स्नान और दान का पुण्य कई हजार गुना प्राप्त होता है। पंडित शक्तिधर शर्मा शास्त्री के अनुसार शास्त्रों में बताया गया है कि पौष मास की पूर्णिमा में जो गंगा में स्नान करने के बाद दान यज्ञ पूजा हवन करते हैं, उनको एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है।
इस दिन गंगा स्नान के बाद तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है। यही वजह है कि स्नान को आए तमाम श्रद्धालु अपने साथ तुलसी की पौध भी लेकर आते हैं। सोमवार को खग्रास चंद्र ग्रहण लगने के कारण और पूर्णिमा तिथि रात्रि व्यापिनी होने के कारण ब्रह्म मुहूर्त से ही अमृत वर्षा का अनोखा योग रहेगा | यही वजह है कि ठंड और शीतलहर में भी लोग ब्रह्ममुहूर्त से ही गंगा में पावन डुबकी लगाई। यह अक्षय योग इसलिए भी है, क्योंकि चंद्रमा से मंगल एवं गुरु शुक्र पंचमस्थ और नवमस्थ हो रहे हैं। साथ ही चंद्र, मंगल, गुरु, शुक्र भी एक दूसरे से पंचम नवम का संबंध बना रहे हैं। यह सर्वकालीन पुण्य दायक है।