लखनऊ। देश के मुक्त विश्वविद्यालयों में भी शोध कराये जाने के आसार बढ़ गये हैं। केंदीय मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने इसका संज्ञान लिया है और इस पर गहन मंथन भी प्रारम्भ हो गया है। केंदीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री डा0 महेंद्र नाथ पाण्डेय ने गुरुवार को यहां बताया कि पिछले दिनों देश भर के कुलपतियों के सम्मेलन में यह विषय उठा था कि मुक्त विश्वविद्यालयों में भी शोध के पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये जायें। उन्होंने बताया कि मंत्रालय ने इसका संज्ञान ले लिया है। डा0 पाण्डेय के जवाब से लग रहा था कि जल्दी ही इस सम्बंध में मंत्रालय की तरफ से कोई अनुकूल फैसला लिया जायेगा। गौरतलब है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शोध पाठ्यक्रम के बड़े हिमायती हैं।
देश में नई शिक्षा नीति कब तक लागू हो जायेगी ? इस सवाल के जवाब में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री ने बताया कि अभी 30 सितम्बर तक लोगों के मसौदे मांगे गये हैं। पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली समिति ने भी नई शिक्षा नीति तैयार करने को लेकर अपनी रिपोर्ट दे दी है। सभी मसौदों पर गहन मंथन के लिए शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों की भी राय ली जायेगी। इसके बाद ही सर्वसम्मति से नई शिक्षा नीति का अंतिम स्वरुप तैयार हो पायेगा। फिलहाल अभी इसमें थोड़ा वक्त लगेगा। यह पूछे जाने पर कि क्या मंत्रालय देश के विभिन्न बोर्डों द्वारा संचालित विद्यालयों के पाठ्यक्रमों के एकीकरण का विचार कर रहा है, उन्होंने बताया कि शिक्षा केंद्र और राज्य की समवर्ती सूची का विषय है। ऐसे में जब तक राज्यों की सहमति नहीं बनती है, केंद्र इस सम्बंध में अकेले कोई निर्णय नहीं ले सकता है।
एक दूसरे सवाल के जवाब में डा0 पाण्डेय ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच क्रांतिकारी है। मंत्रालय उनके विजन के अनुसार भारतीय शिक्षा को सर्वोच्च स्तर पर लाने को प्रयासरत है। वार्ता के दौरान मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री ने मंत्रालय द्वारा जारी विभिन्न योजनाओं की चर्चा करते हुए कहा कि राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) उनमें से एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है, जो शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए चालू किया गया है।
उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत उच्चतर शैक्षिक संस्थाओं को अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में समर्पित करने के लिए योग्य पर्यावरण का निर्माण किया जा रहा है। साथ ही इसके माध्यम से असेवित और अल्पसेवित क्षेत्रों में संस्थाओं को स्थापित करके उच्चतर शिक्षा में पहुंच बनाने में क्षेत्रीय असंतुलनों को संतुलित करने का प्रयास है।