स्वाइन फ्लू का वायरस लगातार कहर बरपा रहा है। प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा जिस वायरस को सामान्य स्थिति वाला बता रहा था, वही अब जानलेवा साबित हो रहा है। स्वाइन फ्लू से उत्तराखंड में तीन और मरीजों की मौत हो गई है। इस तरह शुरुआती चरण में ही स्वाइन फ्लू से मरने वाले मरीजों की संख्या बढ़कर अब छह हो गई है। 
ध्यान देने वाली बात यह कि अधिकांश मरीजों की मौत श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में हुई है। जानकारी के अनुसार, नेहरू कॉलोनी निवासी 71 वर्षीय महिला को कैलाश अस्पताल से बीती पांच जनवरी को श्री महंत इंदिरेश अस्पताल के लिए रेफर किया गया था। 13 जनवरी को तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। उपचार के दौरान सोमवार देर शाम उनकी मौत हो गई है।
वहीं, बीती नौ जनवरी को सहारनपुर निवासी 49 साल के एक व्यक्ति को भी महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें आईसीयू में रखा गया था। उपचार के दौरान उनकी भी 13 जनवरी को मौत हो गई। इसके अलावा बीती छह जनवरी को रुद्रप्रयाग निवासी 48 साल के एक व्यक्ति को भी श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां पर उपचार के दौरान 13 जनवरी को उनकी मौत हो गई है।
सोमवार को आई तीनों मरीजों की जांच रिपोर्ट में स्वाइन फ्लू होने की पुष्टि हुई है। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता ने बताया कि अभी भी श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में स्वाइन फ्लू से पीड़ित दो, मैक्स व सिनर्जी में एक-एक मरीज का उपचार चल रहा है।
श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती एक महिला की हालात नाजुक बनी हुई है। बताया कि सभी अस्पतालों को एहतियात बरतने के निर्देश जारी किए गए हैं। साथ ही लोगों को सावधानी बरतने की अपील भी की गई है।
इलाज के साथ ही बचाव पर भी दीजिए ध्यान
स्वाइन फ्लू के इलाज से ज्यादा उसके बचाव पर ध्यान देने की जरूरत है। खांसते और छींकते समय मुंह पर हाथ नहीं रखना चाहिए, बल्कि कोहनी के हिस्से को मुंह के पास लाना चाहिए। क्योंकि मुंह पर हाथ रखने से सारे वायरस हथेली और उंगलियों पर आकर इकट्ठा हो जाते हैं। इसके बाद यदि हम किसी से हाथ मिलाते हैं तो वायरस दूसरे के हाथ में स्थानांतरित हो जाता है। इससे दूसरे व्यक्ति को भी वायरस का खतरा बढ़ जाता है।
आम फ्लू की तरह होता है स्वाइल फ्लू
गांधी शताब्दी के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. प्रवीण पंवार के अनुसार स्वाइन फ्लू किसी आम फ्लू की तरह ही होता है। इसमें जुकाम, खांसी, बुखार, गले में दर्द, उल्टी आना, सर दर्द, बदन दर्द आदि होता है। इसका संक्रमण ड्रॉपलेट इनफेक्शन के माध्यम से फैलता है।
छह घंटे में बदलना चाहिए मॉस्क
मरीज के खांसने और छींकने से कीटाणु बाहर वातावरण में आते हैं, जो किसी भी वस्तु पर छह से आठ घंटे तक जीवित रहते हैं। कोई भी मरीज या व्यक्ति बचाव के लिए मुंह पर जो मास्क लगाता है, उसे छह घंटे के अंतराल पर बदल देना चाहिए।
वायरस के असर से मास्क खराब हो जाता है। औसतन एक दिन से सात दिन तक मरीज वायरस वातावरण में फैलाता है। संक्रमित होने के दो दिन बाद लक्षण प्रकट होते हैं, जो कि एक से चार दिन तक हो सकता है।
गंभीर बीमार मरीजों पर होता है ज्यादा असर
वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. मुकेश सुंद्रियाल ने बताया कि बच्चों में कोई अन्य बीमारी हो, 65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों में, गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमारियों से पीडि़त मरीजों जैसे फेफड़ों की बीमारी, हृदय रोग, मधुमेह रक्त की बीमारियां, कैंसर, एचआइवी एड्स, लिवर की बीमारी में यह और ज्यादा घातक हो जाता है।
इस बीमारी में खतरे के लक्ष्ण सांस लेने में तकलीफ होना, सीने में दर्द होना, सुस्ती आना, ब्लड प्रेशर का कम होना, बलगम में खून आना, नाखून और होठों का नीला होना प्रमुख है।
बार-बार साबुन से घोएं हाथ
चिकित्सकों के अनुसार इस बीमारी से बचाव के लिए बार-बार साबुन से हाथ धोते रहें। ऐसे मौसम में हाथ मिलाने से बचें, नमस्कार करें। बिना डॉक्टर की सलाह के दवा न लें। इसकी वैक्सीन उपलब्ध है, जो कि हाई रिस्क ग्रुप के व्यक्तियों को ही लगाई जाती है। वैक्सीन का इस्तेमाल छह माह से कम उम्र के बच्चों में नहीं किया जाता, इसलिए यह आवश्यक है कि गर्भवती महिलाओं को यह वैक्सीन अवश्य लगाई जाए।
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