चंडीगढ़ । पंजाब में पिछले दस सालों से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस पार्टी आगामी विधान सभा चुनाव में अभी नहीं, तो कभी नहीं की पारी खेलने की रणनीति पर काम कर रही है। इसी कड़ी में प्रदेश कांग्रेस द्वारा विधान सभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं से 15 अगस्त तक अपना बायोडॉटा पार्टी कार्यालय में जमा करने को कहा गया है। इसमें कोई नई बात नहीं है कि कांग्रेस पार्टी द्वारा संभावित उम्मीदवारों से उनका बायोडॉटा मांगा जा रहा है। संभवतः चुनावों में सहभागिता करने वाले सभी राजनीतिक दल कुछ ऐसी ही प्रक्रियाओं का पालन करते हैं। किन्तु इसमें खास बात यह है कि कांग्रेस ने संभावित प्रत्याशियों से केवल बायोडॉटा ही नहीं मांगा है, बल्कि उनसे साथ में ही एक शपथ पत्र भी जमा करने को कहा गया है, जिसमें संभावित प्रत्याशी यह शपथ लेगा कि उसे टिकट नहीं मिलने की स्थिति में वह पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किये बगैर पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशी को विजयी बनाने में अपना सहयोग देगा। अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों कांग्रेस के रणनीतिकारों को इस प्रकार के शपथ पत्र अपने कार्यकर्ताओं से मांगने पड़े, क्या कांग्रेस के रणनीतिकार पार्टी के अन्दर खाने में चल रही खिंचतान से विचलित हैं। क्या उन्हें यह डर सता रहा है कि अगर पार्टी ने टिकट वितरण में अगर अपने इन नेताओं को प्रत्याशी नहीं बनाया, तो वह दूसरी राजनीतिक पार्टियों का दामन थाम सकते हैं। तो यहां पर यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि भले ही कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश की बागड़ोर पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को सौंपकर उन्हें एक तरह से खुली छुट प्रदान कर दी है। लेकिन सूबे में दशकों से कांग्रेस की राजनीति करने वाले कई दिग्गज अभी भी आलकमान की इस बात का पचा नहीं पा रहे हैं, इसकी एक बानगी 5 जुलाई को प्रदेश कार्यालय में प्रदेश प्रभारी के दौरे के समय देखने को मिली थी, जब प्रदेश प्रभारी के सामने व कार्यालय के बाहर कई नेताओं व कार्यकर्ताओं ने अपना खुला विरोध जताया था। कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं के आक्रोश को देखकर भले ही प्रदेश कांग्रेस द्वारा इस प्रकार के शपथ पत्र संभावित प्रत्याशियों से मांगा जा रहा है, लेकिन इसमें लाख टके का सवाल यह है कि संभावनाओं के खेल वाले राजनीति में क्या इस प्रकार के शपथ पत्र किसी भी राजनीतिक दल में विघटन या फूट को रोकने में कारगर हथियार साबित हो पायेंगे।