उत्तराखंड में इस सीजन अभी तक हुए जबरदस्त हिमपात को वैज्ञानिक गंगोत्री ग्लेशियर की सेहत के लिए अच्छे संकेत मान रहे हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे न सिर्फ ग्लेशियर पिघलने की दर कम होगी, बल्कि लंबे समय तक के लिए ग्लेशियर पर निर्भर गंगा नदी समेत तमाम जलस्रोतों में पानी की कोई कमी नहीं रहेगी। वैज्ञानिकों के अध्ययन में सामने आया कि गंगोत्री ग्लेशियर 22 मीटर सालाना की दर से पिघल रहा है। 
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि पिछले चार सालों की अपेक्षा इस दफा 40 फीसद से अधिक हिमपात का अनुमान लगाया जा रहा है। इससे सीधे तौर पर ग्लेशियर की सेहत तो सुधरी ही है, साथ ही ग्लेशियर के स्नोकवर क्षेत्रों में 60 फीसद से अधिक का इजाफा होने के संकेत मिल रहे हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि लंबे समय तक ग्लेशियर क्षेत्र का तापमान बर्फ जमने के अनुकूल रहेगा। ऐसे में गर्मियों के मौसम में भी न सिर्फ ग्लेशियर पिघलने की दर कम होगी, बल्कि स्नो कवर क्षेत्रों से तमाम जल स्रोतों पानी की उपलब्धता सामान्य से ज्यादा रहेगी। वाडिया संस्थान के अलावा गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान भी विभिन्न ग्लेशियर पर नजर बनाए हैं।
यहां के वैज्ञानिक कीर्ति कुमार का कहना है कि गंगोत्री ग्लेशियर व पिंडारी ग्लेशियर को इस हिमपात से अच्छा खासा सुरक्षा कवच मिल गया है। इस शीतकाल में अब तक 13 बार अच्छी बर्फबारी हो चुकी है। अकेले जनवरी के महीने में नौ बार बर्फबारी रिकॉर्ड की गई। हिमालय की गोद में बसे उत्तरकाशी में चतुरंगी ग्लेशियर, रक्तवन ग्लेशियर, कीर्ति ग्लेशियर, डोकरणी ग्लेशियर सहित कई अन्य ग्लेशियर व हिमखंड हैं। प्रारंभिक रिपोर्टो में इन सभी की सेहत में अच्छा खासा सुधार नजर आ रहा है।
प्रदेश में ग्लेशियर पिघलने की सामान्य दर भी घटेगी
हिमनद विशेषज्ञों के अभी तक के अध्ययन अनुसार प्रदेश के ग्लेशियर 10 मीटर प्रतिवर्ष की औसत दर से पिघल रहे हैं। इनमें गंगोत्री ग्लेशियर सबसे ज्यादा तेज तकरीबन 22 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहा है। इस सीजन के हिमपात से यह दर और नीचे आने का अनुमान लगाया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के दौर में ग्लेशियरों की सेहत सुधरने को विज्ञानी अच्छा संकेत मान रहे हैं।
अप्रैल में मिलेगी बर्फबारी का वास्तविक आंकड़ा
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल का कहना है कि संस्थान ने चौराबाड़ी व डुकरानी ग्लेशियर में ऑटो वेदर स्टेशन लगाए हैं। यह स्टेशन बर्फबारी का डेटा भी रिकॉर्ड करते हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आवाजाही के लिए मौसम अनुकूल होने पर अप्रैल माह के दौरान स्टेशन से डेटा प्राप्त किया जाएगा। तभी बर्फबारी की वास्तविक स्थिति का आकलन किया जा सकता है।
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