संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद पर बेशर्म और पाखंडी होने का आरोप लगाते हुए अमेरिका इस वैश्विक संस्था से बाहर निकल आया है। इसका कहना है कि परिषद जहां गलत काम करने वालों पर चुप्पी साध लेती है, वहीं बेगुनाह देशों की गलत आलोचना करती रहती है। अमेरिका अब किसी पाखंडी संस्था का भाषण नहीं सुनेगा।
वाशिंगटन के मानवाधिकार परिषद से बाहर आने का एलान संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली रंधावा ने किया। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मानवाधिकार का उल्लंघन करने वाले देश लगातार परिषद में बने हुए हैं। उन्होंने इस पर इजरायल के प्रति भेदभाव और शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने का भी आरोप लगाया। रंधावा ने कहा कि मानवाधिकार परिषद से बाहर आने का मतलब मानवाधिकार के प्रति वचनबद्धताओं से हमारा पीछे हटना नहीं है। दरअसल, हमने यह कदम उठाया ही इसलिए है कि हमारी प्रतिबद्धता हमें किसी पाखंडी संस्था में बने रहने की इजाजत नहीं दे रही है।
हम किसी ऐसी संस्था में नहीं बने रह सकते, जिसने मानवाधिकार का मजाक बनाकर रख दिया है।पत्रकार वार्ता में रंधावा के साथ मौजूद अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा कि हमें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि किसी समय इसका उद्देश्य बहुत अच्छा था। लेकिन, आज यदि ईमानदारी से कहा जाए, तो यह मानवाधिकारों की रक्षा करने में नाकाम साबित हो रहा है। चीन, क्यूबा और वेनेजुएला जैसे देश भी इसके सदस्य बने हुए हैं, जिनका मानवाधिकार रिकॉर्ड अस्पष्ट और घृणास्पद रहा है।
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली रंधावा ने पिछले साल ही सदस्यता वापस लेने की धमकी दी थी। उस समय उन्होंने इजरायल के खिलाफ परिषद पर पक्षपात करने का आरोप लगाया था। लेकिन मंगलवार की घोषणा यूएन मानवाधिकार परिषद प्रमुख द्वारा ट्रंप प्रशासन की निंदा किए जाने के एक दिन बाद की गई है। एक दिन पहले यूएन मानवाधिकार परिषद प्रमुख ने अप्रवासी बच्चों को उनके माता-पिता से अलग करने के लिए ट्रंप प्रशासन की निंदा की थी।
गौरतलब है कि अमेरिका ने पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के शासन काल में भी तीन साल तक मानवाधिकार परिषद का बहिष्कार किया था, लेकिन ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद 2009 में वह इस परिषद में फिर से शामिल हुआ था।