आतंकी फंडिंग को लेकर पाकिस्तान को वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) की निगरानी सूची में लंबे समय के लिए शामिल कर दिया गया है। पेरिस में चल रही एफएटीएफ बैठक में पाकिस्तान की ओर से आतंकी फंडिंग रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों की सूची पेश की गई, लेकिन सदस्य देशों ने इसे नाकाफी करार दिया।
फरवरी की बैठक में पाकिस्तान को तीन महीने के लिए निगरानी सूची में शामिल करते हुए आतंकी फंडिंग रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने की चेतावनी दी गई थी। वैसे तो एफएटीएफ की बैठक शुक्रवार तक चलेगी और उसके बाद ही इस संबंध में आधिकारिक घोषणा की जाएगी।
इसी कारण भारत भी इस मुद्दे पर आधिकारिक टिप्पणी करने से बच रहा है। लेकिन इस्लामाबाद से आ रही खबरों के मुताबिक एफएटीएफ ने आतंकी फंडिंग रोकने के लिए पाकिस्तान की ओर से पेश किए गए दावे को नाकाफी करार दिया है।
पाक विदेश मंत्रालय ने पूरी प्रक्रिया को राजनीतिक करार देते हुए दावा किया कि उसका आतंकी फंडिंग से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि सारे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का साथ देने वाले चीन और सऊदी अरब ने भी आतंकी फंडिंग को लेकर पाकिस्तान का साथ छोड़ दिया है।
वैसे तो एफएटीएफ को किसी भी देश के साथ आर्थिक लेन-देन प्रतिबंधित करने का अधिकार नहीं है। लेकिन निगरानी सूची में आने के बाद आर्थिक मुश्किलों से गुजर रहे पाकिस्तान की दुश्वारियां बढ़ जाएंगी। दरअसल, पाकिस्तान लंबे समय तक दुनिया को यह दिखाने की कोशिश करता रहा है कि वह खुद आतंकवाद से पीड़ित है और उसे खत्म करने के लिए सारे प्रयास कर रहा है। लेकिन भारत ने अक्टूबर 2016 में एफएटीएफ में पाकिस्तान में आतंकी संगठनों को हो रही भारी फंडिंग का मुद्दा उठाया था।
भारत का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र से अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों की सूची में डाले गए लश्कर ए तैयबा, जमात उद दावा और जैश ए मोहम्मद के आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं और आतंकी हमलों के लिए फंड इकट्ठा कर रहे हैं। इसके समर्थन में भारत ने कई दस्तावेज भी प्रस्तुत किए थे।
भारत के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए एफएटीएफ ने इसकी जांच का फैसला किया और एशिया पैसिफिक ग्रुप को इस पर तीन महीने के भीतर रिपोर्ट देने को कहा। लेकिन एशिया पैसिफिक ग्रुप के सदस्यों को पाकिस्तान प्रभावित करने में सफल रहा है और रिपोर्ट तैयार नहीं होने दी।
भारत ने फरवरी 2017 में एफएटीएफ की बैठक में फिर यह मुद्दा उठाया तो पाकिस्तान की ओर से इसका तीखा विरोध हुआ। पाकिस्तान की कोशिश थी कि इस मुद्दे को तकनीकी पहलुओं में उलझा दिया जाए। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों के भारत को मिले समर्थन से पाकिस्तान की मंशा सफल नहीं हो सकी।
पाक पर संभावित प्रभाव –
-चरमरा सकती है पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था
– वैश्विक वित्तीय संस्थाएं गिरा सकती हैं साख, कर्ज मिलना होगा मुश्किल
– क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां गिरा सकती हैं देश की रेटिंग
– वित्तीय अनिश्चितता का चीन उठा सकता है फायदा
– विदेशी बैंक समेट सकते हैं अपना कारोबार
– यूरोपीय देशों को निर्यात पर पड़ेगा प्रतिकूल असर
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