शहर के पश्चिम क्षेत्र स्थित प्राचीन रणजीत हनुमान मंदिर में बुधवार को भले ही कार्तिक अमावस्या नहीं थी लेकिन नजारा दीपावली जैसा था। मानो ऐसा लग रहा था कि रणजीत हनुमान के दरबार में पौष माह की पंचमी पर भक्त दीपों का पर्व दिवाली मना रहे हो। मंदिर परिसर में राम-हनुमान, स्वास्तिक, गदा, शंख, चक्र की आकृतियां उकेरी गई थीं और इस पर रंगबिरंगे दीपक जल रहे थे। मंदिर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं था जो दीपों की रोशनी से जगमगा न रहा हो।

फिर चाहे वह मंदिर का परिसर, परिक्रमा स्थल, मुख्य हॉल, गर्भगृह हो या अन्नक्षेत्र, पार्किंग स्थल हो। हर तरफ दीपक जगमगा कर रहे थे। अवसर था जय रणजीत भक्त मंडल द्वारा आयोजित चार दिनी रणजीत अष्टमी महोत्सव के पहले दिन आयोजित दीपोत्सव और भजन संध्या का। इसमें 21 हजार दीपक, 25 ग्रीन मास्क और 15 झूमर की रोशनी में मंदिर परिसर जगमगा रहा था। थोड़ा आगे बढ़ने पर मंदिर के मुख्य हॉल 6 बाय 6 की फूलों की रांगोली सजी हुई थी और सामने नजर आ रही थी रजवाड़ी पगड़ी पहने बाबा रणजीत हनुमानजी की प्राचीन प्रतिमा। नजर घुमाने पर रामजी भी स्वर्ण मुकुट में श्रृंगारित स्वरूप में भक्तों को दर्शन दे रहे थे।
आराध्य के इस मनमोहन स्वरूप के दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतार लगी हुई थी। मंदिर से लगे दो एकड़ के मैदान के एक हिस्से पर भजन गायक द्वारकादास मंत्री लाल लंगोटो हाथ में सौटो और रामजी चले न श्रीराम के बिना जैसे भजनों की प्रस्तुति दे रहे थे। पास ही युवाओं द्वारा की जा रही रंगारंग आतिशबाजी उत्सवी उल्लास को दुगुना कर रही थी। सर्द मौसम में भक्त हाथों में कुल्हड़ लिए गर्मा-गर्म दूध का आनंद ले रहे थे।
इससे पहले महोत्सव में शिरकत करने के लिए भक्तों के जुटने का सिलसिला शाम 6.30 बजे से शुरू हो गया था। मुख्य पुजारी दीपेश व्यास ने बताया कि रणजीत हनुमान के भक्तों ने चार दिनी उत्सव के पहले दिन दिवाली मनाई। 21 हजारों दीपों से साढ़े चार एकड़ में दीप सज्जा की। 7 हजार दीपक भक्त मंडल द्वारा लगाए गए थे और अन्य दीपक 5, 7 और 11 की संख्या में लोग अपने घर से लाए थे।
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