Thursday , November 14 2024
1975 का चिरूडीह कांड - शिबू सोरेन का राजनीतिक संघर्ष,झारखंड के चिरूडीह संघर्ष में शिबू सोरेन की भूमिका,1975 की ऐतिहासिक चिरूडीह घटना - झारखंड आंदोलन,शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा और चिरूडीह कांड,झारखंड के चिरूडीह में आदिवासी-मुस्लिम संघर्ष, 1975,चिरूडीह नरसंहार में शिबू सोरेन का न्याय के लिए संघर्ष,झारखंड के चिरूडीह नरसंहार का ऐतिहासिक विवरण,शिबू सोरेन और 1975 का चिरूडीह कांड,झारखंड का 1975 चिरूडीह संघर्ष - आदिवासी आंदोलन, Jharkhand political history, Chirudih incident 1975, Shibu Soren's struggle, Jharkhand movement, Tribal and Muslim conflict, Impact of Chirudih incident, Political journey of Shibu Soren, Social movements in Jharkhand, Political struggle in Jharkhand, 1975 Chirudih conflict, Tribal movements in Jharkhand, Chirudih massacre,झारखंड राजनीति इतिहास, चिरूडीह कांड 1975, शिबू सोरेन का संघर्ष, झारखंड आंदोलन, आदिवासी और मुस्लिम संघर्ष, चिरूडीह घटना का प्रभाव, शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा, झारखंड की सामाजिक हलचल, झारखंड का राजनीतिक संघर्ष, 1975 का चिरूडीह संघर्ष, झारखंड में आदिवासी आंदोलन, चिरूडीह हत्याकांड,
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा

झारखंड चुनाव विशेष : झारखंड का रक्तरंजित इतिहास: चिरूडीह कांड से शिबू सोरेन की राजनीति तक

रिपोर्ट – मनोज शुक्ल

“23 जनवरी 1975 को झारखंड के चिरूडीह गांव में आदिवासियों और मुसलमानों के बीच हुए खूनी संघर्ष ने झारखंड की राजनीति का रंग बदल दिया। इस घटना के बाद शिबू सोरेन ने अपनी राजनीति की नींव रखी और बाद में केंद्रीय मंत्री बने। जानें इस कांड की पूरी कहानी और कैसे ये घटनाएं शिबू सोरेन के भविष्य को प्रभावित करती हैं।”

23 जनवरी 1975, चिरूडीह गांव, जामताड़ा
यह दिन था मुहर्रम का, और बिहार के दुमका जिले में स्थित चिरूडीह गांव में मुसलमानों द्वारा जुलूस निकालने और मातम मनाने की तैयारी चल रही थी। यह गांव अब झारखंड के जामताड़ा जिले का हिस्सा है।

इसी समय, चिरूडीह गांव के पास स्थित एक मैदान में सैकड़ों आदिवासी एकत्रित हुए थे, जिनके हाथों में पारंपरिक हथियार जैसे तीर-कमान थे। उनका मुख्य उद्देश्य सूदखोरी का विरोध करना था। आदिवासी समुदाय महाजनों के खिलाफ थे, जो उन्हें ब्याज पर पैसे उधार देते थे और न चुकाने पर उनकी जमीनें हड़प लेते थे।

वहां एक 31 साल का नौजवान आदिवासियों का नेतृत्व कर रहा था, और उसने घोषणा की, “हम महाजनों की फसल काटेंगे।” आदिवासी लोग इस आह्वान के बाद महाजनों की फसल काटने के लिए निकल पड़े। जैसे ही यह खबर महाजनों तक पहुंची, वे अपने हथियारों के साथ चिरूडीह और आसपास के गांवों में इकट्ठा होने लगे।

इसी बीच, कुछ लोग दौड़ते हुए आदिवासियों की सभा में पहुंचे और बताया कि एक समुदाय ने उनके गांव में आग लगा दी है और लूट-पाट कर रहे हैं। इस खबर से आदिवासी उत्तेजित हो गए और वे चिरूडीह की ओर दौड़ पड़े।

यहां से शुरू हुआ एक खूनी संघर्ष। आदिवासियों ने तीर-कमान और महाजनों ने बंदूकें तानी थीं। दोनों पक्षों के बीच हिंसा शुरू हो गई। घर जलाए जाने लगे, और हर ओर चीख पुकार मच गई। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए घंटों प्रयास किया, लेकिन अंततः गोलीबारी का सहारा लिया गया।

संध्या तक हिंसा थमी, लेकिन 11 शवों का पता चला—जिनमें 9 मुसलमान थे। बाकी दो शवों में से एक पहचान में आया—नारायणपुर के महाराजा त्रिलोकी नारायण सिंह का, जबकि दूसरे की पहचान नहीं हो पाई।

वहीं, वह 31 वर्षीय नौजवान जो आदिवासियों का नेता बन चुका था, रातोंरात हीरो बन गया। उसका नाम था शिबू सोरेन, जिसे बाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का प्रमुख बनाया गया। वह मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री बने, झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और आठ बार सांसद रहे। हालांकि, चिरूडीह कांड की वजह से उन्हें केंद्रीय मंत्री रहते हुए फरार होना पड़ा और जेल भी जाना पड़ा।

इस घटना ने शिबू सोरेन को न सिर्फ आदिवासियों का मसीहा बनाया, बल्कि राजनीति में एक महत्वपूर्ण चेहरा भी बना दिया। हालांकि, बाद में यह कांड उनके लिए एक अंधेरे अध्याय के रूप में सामने आया, जिसमें उन्होंने पुलिस की नजरों से बचते हुए छुपकर जीवन बिताया।

आज भी जामताड़ा और आसपास के गांवों के लोग इस घटना को याद करते हैं। आदिवासियों और महाजनों के बीच हुए इस संघर्ष ने झारखंड के इतिहास में एक गहरी छाप छोड़ी है, जो न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी प्रभाव डालने वाली घटना बन गई।

देश-दुनिया से जुड़ी और भी रोचक जानकारी के लिए विश्ववार्ता पर बने रहें।

E-Paper

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com