अशोक पाण्डेय
लखनऊ। ‘हाथ’ ने अगर ‘साइकिल’ थाम ली तो दूसरे दलों के लिए भारी मुश्किल हो सकती है। मुख्यमंत्री का बयान कि ‘गठबंधन होने पर हम 300 सीटें जीतेंगे’ शेखचिल्ली का बयान नहीं है। सपा-कांग्रेस की यह जुगलबंदी भाजपा और बसपा के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है और कहीं छोटे चौधरी भी हल लेकर इस नाव पर सवार हो गए तो यह गठबंधन अजेय हो सकता है। ‘त्रिवेणी’ का यह ‘संगम’ सबकी लुटिया डुबा सकता है।
गौरतलब है कि पिछले पांच विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने हर बार बहुमत की सरकार बनाने वाले दलों से कहीं ज्यादा वोट पाए हैं। उत्तर प्रदेश में 30 प्रतिशत वोट पाकर बहुमत की सरकारें बनती आई हैं जबकि सपा और कांग्रेस ने पिछले पांच विधानसभा चुनावों में हर बार 35 से 40 प्रतिशत तक वोट हासिल किए हैं।
2017 के महासमर में मुस्लिम मतदाता भाजपा के ताबूत में कील ठोंकने की एकजुट कोशिश करेंगे। मुस्लिम मतदाता ही तय करेंगे कि उत्तर प्रदेश की बाहशाहत किसे दी जाए, शायद यही कारण है मुस्लिमपरस्त समाजवादी पार्टी के अलावा बसपा और कांग्रेस भी मुसलमानों की ही दुहाई दे रहे हैं। सभी दलों की टकटकी मुस्लिम मतदाताओं पर ही लगी है। मायावती तो कई बार सार्वजनिक मंचों पर दलित- मुस्लिम गठजोड़ का नारा लगा चुकी हैं। ‘बहुजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ का नारा ‘हाथी’ के हौदे से उतार दिया गया है। मंशा साफ है कि सबको मुस्लिम वोट चाहिए।
भाजपा की जीत-हार के बीच हिचकोले खा रहे मुस्लिम मतदाता को सपा-कांग्रेस गठबंधन से राहत की सांस मिलेगी और वोटों के बिखराव की आशंका क्षीण होगी। मुलायम तो वैसे ही ‘मुल्ला मुलायम’ के नाम से मशहूर हैं और कांग्रेस सदैव मुसलमानों की हमदम रही है। कांग्रेस का प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों पर 10 से 15 हजार सुरक्षित वोट है। यहां मतदाता यह जानते हुए भी कि उनका उम्मीदवार तीसरे-चौथे नम्बर पर है, कांग्रेस को ही वोट देते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनाधार खोने के बावजूद अजित सिंह ही जाटों के एकमात्र नेता हैं। कांग्रेस-सपा गठबंधन में शामिल होने पर कुछ जाट मतदाता छोटे चौधरी से नाखुश भी हो सकते हैं, लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण इस महागठबंधन को मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बढ़त अवश्यंभावी है।
गौरतलब है कि 2012 में सपा ने 29 फीसदी वोट और 224 सीटें पाकर बहुमत की सरकार बनाई। इस चुनाव में कांग्रेस को 11 फीसदी वोट और 38 सीटें मिलीं। 2007 के चुनाव में 30 फीसदी वोट और 206 सीटों से बसपा की बहुमत की सरकार बनी। इस चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर 35 फीसदी वोट पाए।
2002 चुनाव में गठबंधन सरकार बनी और इस बार भी कांग्रेस और सपा ने मिलकर 35 फीसदी वोट पाए। 1996 के चुनाव में 30 फीसदी वोट और 175 सीटें पाकर भाजपा की सरकार बनी। इस चुनाव में भी सपा और कांग्रेस ने मिलकर 31 फीसदी वोट पाए। 1993 में कांग्रेस-सपा को एकजुट 33 फीसदी वोट और 137 सीटें मिलीं। आंकड़े गवाह हैं कि सपा और कांग्रेस ने हर विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने वाली पार्टी से अधिक वोट पाए हैं। यदि मतदाताओं के रुझान का यही हाल रहा तो महागठबंधन की इस स्थिति में मुख्यमंत्री का 300 सीटों का दावा पुख्ता साबित हो सकता है।
पिछले पांच विधानसभा चुनावों में कांग्रेस-सपा ने पाए 35 से 40 फीसदी वोट
30 प्रतिशत वोट पाकर प्रदेश में हर बार बनी है बहुमत की सरकार
अजित सिंह के शामिल होने से अजेय हो सकता है महागठबंधन
संशय के भंवर में हिचकोले खा रहे मुसलमान हो सकते हैं मेहरबान
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