विशाखापट्टनम– हिन्दी विभाग, आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखा परिषद और अवधी साहित्य संस्थान, अमेठी, उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में “हिन्दी भाषा एवं साहित्य: एक विमर्श” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन समारोह सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण के साथ की गई।
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मुख्य वक्ता साहित्य भूषण आचार्य महेश दिवाकर ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि “हिन्दी साहित्य की गंगा है, जो समूचे देश को महासमुंद में समाहित करती है।” उन्होंने यह भी बताया कि “संस्कृत हमारी जननी है और उसकी बेटी हिन्दी हमारी मातृभाषा है।” मुख्य अतिथि, आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शशि भूषण ने कहा कि “हिन्दी समूचे देश को एक सूत्र में बांधने का कार्य करती है” और सभी हिंदीवासियों को हिन्दी साहित्य के संवर्धन के लिए आगे आने की आवश्यकता पर जोर दिया।
नार्वे से आए प्रवासी भारतीय डॉ. सुरेश चन्द्र शुक्ल शरद आलोक ने भी अपनी बात रखी, जिसमें उन्होंने कहा कि “भारत में सभी भाषाएं हमें जोड़ती हैं।” उन्होंने “अनेकता में एकता” को भारत की शक्ति बताया।
अवधी साहित्य संस्थान के संयोजक ने कहा, “सागर से भी गहरी है हमारी हिन्दी।” उन्होंने भाषाई समन्वय के माध्यम से हिन्दी साहित्य के संवर्धन की आवश्यकता पर बल दिया और यह भी कहा कि “हमें अपनी भाषा और अपने देश पर गर्व होना चाहिए।”
संगोष्ठी के पहले सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर एस. एम. इकबाल और दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर महेश दिवाकर ने की। इस अवसर पर प्रोफेसर एस. शेषारत्नम, राही राज (बंगलुरु), प्रयास जोशी (मध्य प्रदेश), हरि नाथ शुक्ल हरि, प्रोफेसर जे. विजया भारती, डॉ. के. शान्ति, शोभावती, प्रीती राज, डॉ. संतोष, युधिष्ठिर पाण्डेय और रीता पाण्डेय सहित सैकड़ों छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
सत्र का संचालन डॉ. शिवम् तिवारी ने किया, जिन्होंने इस संगोष्ठी को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आयोजन ने हिन्दी भाषा और साहित्य को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान किया।