कुशीनगर न्यायिक संगोष्ठी में न्याय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल माध्यमों की भूमिका को लेकर गहन चर्चा हुई। बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कसया में आयोजित इस व्याख्यान में आचार्य डॉ. ओंकार नाथ तिवारी और पूर्व सांसद राजेश पाण्डेय ने न्यायिक सक्रियता और समकालीन परिदृश्य पर अपने विचार रखे।
मुख्य वक्ता आचार्य डॉ. ओंकार नाथ तिवारी ने कहा कि उचित आचरण की व्यवस्था ही न्याय है। संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति का संतुलन सुनिश्चित किया गया है। जब कोई अंग अपनी सीमा लांघता है, तो व्यवस्था में अराजकता की स्थिति उत्पन्न होती है। उन्होंने यह भी कहा कि कभी-कभी न्यायपालिका की सक्रियता राजनीति को हस्तक्षेप जैसी लग सकती है, जबकि वह सिर्फ न्याय के मूल उद्देश्य की पूर्ति होती है।
कुशीनगर न्यायिक संगोष्ठी में पूर्व सांसद राजेश पाण्डेय ने कहा कि समाज की प्रवृत्ति बनती जा रही है कि जो निर्णय उनके हित में होता है, वह सही लगता है, लेकिन विपरीत निर्णयों पर न्यायपालिका की आलोचना होती है। उन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर नियंत्रण की आवश्यकता जताते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अराजकता नहीं फैलाई जा सकती।
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इस अवसर पर हिंदी विभाग के आचार्य प्रो. गौरव तिवारी ने संगोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि संविधान में शक्ति संतुलन की अवधारणा ही व्यवस्था की रीढ़ है। जब किसी एक संस्था की सक्रियता असामान्य लगती है, तब विवाद खड़े होते हैं।
कार्यक्रम का संचालन और संयोजन पूर्व प्राचार्य प्रो. अमृतांशु शुक्ल ने किया। प्राचार्य प्रो. विनोद मोहन मिश्र ने स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम को डॉ. दयाशंकर तिवारी और कृष्ण कुमार जायसवाल ने भी संबोधित किया।
इस संगोष्ठी में प्रो. राम भूषण मिश्र, प्रो. इंद्रासन प्रसाद, प्रो. सीमा त्रिपाठी, डॉ. विवेक चंद, डॉ. हिमांशु मिश्र सहित अनेक शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं की उपस्थिति रही।
इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि न्यायिक सक्रियता समाज के संतुलन और लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। साथ ही, डिजिटल मीडिया पर नियंत्रण की जरूरत अब और अधिक गंभीरता से समझी जानी चाहिए।