रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी नीतिगत ब्याज दर में चौथाई फीसदी तक कटौती कर सकती है. हालांकि बैंक अभी इस कटौती के बाद अपने प्रमुख ब्याज दरों में कटौती को लेकर सीधे-सीधे नहीं कुछ कह रहे.
अगर ब्याज घटे तो आपकी ईएमआई भी कम हो सकती है. यानि आपको सस्ता होम और कार लोन मिल सकता है.
नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट वो दर है जिसपर रिजर्व बैंक, आम बैंकों को बहुत ही थोड़े समय के लिए कर्ज देता है.
पटेल की अगुवाई वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की दो दिनों की बैठक मुंबई में मंगलवार को शुरु हुई. समिति कारोबारी साल 2016-17 के लिए छठी और आखिरी बार मौद्रिक नीति की समीक्षा करेगी और फिर फैसला होगा कि नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट घटायी जाए या नहीं. ये फैसला बुधवार को आएगा. नोटबंदी के बाद वैसे तो दिसम्बर में कमी की उम्मीद थी. लेकिन समिति ने सबको हैरान करते हुए दर में कोई बदलाव नहीं किया. फिलहाल, अबकी फैसले को लेकर जानकार साफ-साफ राय बनाने से बच रहे हैं. हालांकि बजट में कम उधारी और बैंकों के पास ज्यादा नकदी ब्याज दर में कमी की ओर जरुर इशारा कर रहे हैं.
प्रमुख सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक की सीईओ व एमडी उषा अनंतसुब्रमण्यिन की मानें तो बाजार में आम राय है कि रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती होगी.
इस समय:-
· नीतिगत ब्याज दर सवा छह फीसदी है. अक्टूबर में इसमें चौथाई फीसदी की कटौती की गयी थी.
· दूसरी ओर बैंकों ने पिछले एक महीने में कर्ज पर ब्याज दर में 90 बेसिस प्वाइंट तक की कटौती की. सौ बेसिस प्वाइंट का मतलब एक फीसदी होता है. औसत ब्याज दर पौने सात फीसदी से 8.20 फीसदी के बीच है
· घर कर्ज पर ब्याज दर 8.35 फीसदी तक आ चुकी है, जो पिछले कई सालों में न्यूनतम है
· हालांकि मियादी जमाओं यानी एफडी पर भी ब्याज दरें घटी है. एक साल से ज्यादा की जमा पर ब्याज दर साढ़े छह से सात फीसदी के बीच है.
फिलहाल, बैंक अभी सीधे-सीधे कुछ कहने से बच रहे हैं कि नीतिगत ब्याज दर घटी तो क्या वो अपने ब्याज दरों में कटौती करेंगे या नहीं. उषा अनंतसुब्रमण्यिन कहती हैं कि एमसीएलआर (Marginal Cost of Funds Based Lending यानी वो दर जिसमें 35-60 प्वाइंट्स का अपना मार्जिन जोड़कर बैंक कर्ज के लिए ब्याज दर तय करते हैं) की हर महीने समीक्षा होती है. वो आगे बताती हैं कि नोटबंदी के बाद उन्हे काफी जमा मिला है. अब ये देखना है कि ये जमा कितने दिनों तक बना रहता है. उसके बाद जरुरत के आधार पर ब्याज दर पर कोई फैसला होगा.
जानकारों की मानें तो नीतिगत ब्याज दर में कमी से बैंकों पर ब्याज दर घटाने का कुछ दवाब तो बन सकता है, हालांकि जनवरी के महीने में उन्होंने जितनी कटौती की, उससे उनपर नीतिगत ब्याज दर में कटौती का फायदा लोगों तक नहीं पहुंचाने का आरोप खत्म हो गया. फिलहाल, बैकों के पास नकदी काफी ज्यादा है और कर्ज की रफ्तार ज्यादा नहीं बढ़ी है. ऐसे में ब्याज दर में कुछ और कमी कर कर्ज के बाजार में माहौल गरमाने की कोशिश हो सकती है.