पिछले महीने चीन की अनौपचारिक यात्रा के बाद पीएम नरेंद्र मोदी रूस की ऐसी ही एक दिवसीय यात्रा पर पहुंचे हैं. वहां के तटीय शहर सोची में उनकी मुलाकात रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से होने वाली है. व्लादिमीर पुतिन के एक बार फिर राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पीएम मोदी की रूस की यह पहली यात्रा है. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक दोनों नेता ‘बिना किसी एजेंडे’ के चार से छह घंटे वार्ता करेंगे, जहां द्विपक्षीय मुद्दों पर विचार-विमर्श बहुत सीमित होने की संभावना है. इसी वजह से सवाल उठ रहे हैं कि PM मोदी आखिर किस कूटनीतिक मकसद के साथ रूस गए हैं?
1. कूटनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक रूस और चीन के साथ पीएम मोदी की इस तरह की अनौपचारिक बातचीत का मकसद बिना किसी ताम-झाम के शीर्ष स्तर पर सीधे संवाद से है. मसलन डोकलाम के बाद भारत और चीन के बीच रिश्तों में तल्खी के साथ अविश्वास बढ़ा. इसलिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पीएम मोदी ने वहां तत्काल दौरा कर अपने ‘मित्र’ को बधाई दी और अनौपचारिक बातचीत के जरिये सीमा विवाद जैसे कई मुद्दों पर सीधे चीनी राष्ट्रपति से बातचीत की. उसका असर यह हुआ कि सीमा पर किसी भी प्रकार की गलतफहमी या संकट से निपटने के लिए कई बेहतरीन उपायों का ऐलान किया गया.
2. अनौपचारिक बातचीत का मकसद ही यह होता है कि पहले से तय एजेंडे के अलग शीर्ष नेतृत्व अपने हिसाब से मुद्दों का निर्धारण करते हुए राष्ट्रीय हित में बातचीत करता है. कूटनीतिक चैनल के इतर इससे निजी तौर पर भी नेताओं के परस्पर संबंध विकसित होते हैं. इसीलिए पीएम मोदी ऐसी यात्राएं कर रहे हैं.
3. पिछले दिनों ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका ने पीछे हटने की घोषणा की है. इसी तरह पिछले साल उसने अपने कानूनी प्रावधानों के तहत उत्तर कोरिया, ईरान और रूस पर कई तरह की पाबंदियां लगाई हैं. आंकड़ों के मुताबिक भारत अपनी जरूरत का 68 प्रतिशत हथियार अकेले रूस से ही खरीदता है. इस बीच सूत्रों ने स्पष्ट किया कि भारत रूस के साथ अपने रक्षा सहयोग को निर्देशित करने की किसी अन्य देश को इजाजत कभी नहीं देगा. पुतिन और मोदी के बीच अनौपचारिक बैठक का मकसद दोनों देशों के बीच मैत्री और आपसी विश्वास का इस्तेमाल कर वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर के अहम मुद्दों पर आम राय कायम करना है. इस दौरान दोनों नेता भारत रूस असैन्य परमाणु सहयोग को अन्य देशों तक आगे बढ़ाने पर भी चर्चा कर सकते हैं.
4. इसके अलावा दोनों नेताओं के बीच सीरिया और अफगानिस्तान के हालात, आतंकवाद के खतरे तथा आगामी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और ब्रिक्स सम्मेलन से संबंधित मामलों पर भी चर्चा की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं. अगले महीने शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) और जुलाई में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है. इन दोनों ही संगठनों में भारत के साथ रूस और चीन दोनों ही हैं.
5. भारत का पड़ोसी चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद है. रूस के इन दोनों देशों के साथ मधुर संबंध हैं. भारत इस क्षेत्र में अमेरिका और रूस के सहयोग से पड़ोसियों के कारण बढ़ती चिंताओं पर काबू पाना चाहता है. दूसरी तरफ रूस को इस बात का बखूबी अहसास है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को रोकने के लिए उसे रूस के साथ भारत जैसे मजबूत देश की दरकार है. भारत, अमेरिका के साथ बढ़ती दोस्ती के बीच भी वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में परंपरागत दोस्त रूस को छोड़ने के कतई मूड में नहीं है.