लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कांग्र्रेस के गिरते जनाधार को बढ़ाने का ठेका लेने वाले राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर अपने मिशन में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं। पग-पग पर उन्हें पार्टी के ही नेता सहयोग के बजाय अड़चनें पैदा कर रहे हैं। परिणाम स्वरूप प्रशान्त किशोर की योजना को अमली जामा पहनाने से पहले ही कांग्रेसी ही पलीता लगा रहे हैं। उत्तर प्रदेश की जमीनी हकीकत को जानने के लिए प्रशांत किशोर ने सूबे का दौरा भी किया और स्थानीय नेताओं के साथ बैठक भी की। लेकिन बैठक में उन्होंने जो कांग्रेसी नेताओं को होमवर्क दिया था उसको कांग्रेसियों ने पूरा ही नहीं किया। प्रशांत किशोर ने विधानसभा चुनाव लड़ने वाले टिकटार्थियों से बूथ वाइज कार्यकर्ताओं के नाम,जातिगत आंकड़े,और स्थानीय समस्याओं समेत 20 बिन्दुओं पर रिपोर्ट मांगी गयी थी। कांग्रेसी इसमें फिसड्डी साबित हुए।
दिलचस्प बात है कि कांग्रेस में ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली कहावत लागू होती है। क्योंकि इस पार्टी में कार्यकर्ता कम और नेता ज्यादा हैं । पार्टी का काम तो कार्यकर्ता ही करता है। वहीं पीके की कार्यशैली से कांग्रेस के नेता खासे नाराज भी हैं।इन नेताओं की पीके की शिकायत शीर्ष नेतृत्व से कर भी दी है। इस बात की सफाई भी प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद को सार्वजनिक रूप से देनी पड़ी की प्रशांत किशोर केवल रणनीतिकार हैं। कांग्र्रेस के अंदरूनी मामलों में वह दखल नहीं देंगे। हलांकि कांग्रेस के एक धड़े को ऐसा महसूस हो रहा है कि प्रशांत किशोर अपने दायरे से बाहर जाकर काम करना चाहते हैं। सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के लिए प्रशांत किशोर ने मांग कि राज्य में कांग्रेस की एक नई टीम को 2017 के विधानसभा चुनावों का नेतृत्व करना चाहिए। गुलाम नबी आजाद को प्रदेश प्रभारी बनाया गया और शीला दीक्षित को जिम्मेदारी देने की चर्चा चल रही है।