नई दिल्ली, 14 मई:
जस्टिस बीआर गवई मुख्य न्यायाधीश के रूप में आज देश के 52वें प्रधान न्यायाधीश (CJI) बन गए हैं। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के समक्ष शपथ ली। जस्टिस गवई ने जस्टिस संजीव खन्ना का स्थान लिया है, जो कल सेवानिवृत्त हुए थे।
जस्टिस गवई का कार्यकाल 6 महीनों का होगा और वे 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे। वे भारत के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले यह गौरव जस्टिस केजी बालकृष्णन को प्राप्त हुआ था।
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शपथ ग्रहण के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और कई केंद्रीय मंत्रियों ने उन्हें बधाई दी। पूर्व CJI संजीव खन्ना भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।
जस्टिस गवई ने 1985 में बार काउंसिल से जुड़कर बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की थी। 2003 में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बनाए गए। 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया।
सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस गवई ने करीब 300 फैसले लिखे हैं। वे कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं। इनमें केंद्र सरकार के 2016 के नोटबंदी निर्णय को सही ठहराना और चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करने जैसे ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं।
जस्टिस गवई के पिता आरएस गवई एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे तीन राज्यों के राज्यपाल और संसद के दोनों सदनों के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापना की थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता व सांसद डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने जस्टिस गवई को “सबसे व्यावहारिक और परिणामोन्मुखी न्यायाधीशों में से एक” बताया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “वे विनम्रता के प्रतीक हैं, निष्पक्षता और बौद्धिक स्वतंत्रता के आदर्श उदाहरण हैं।”
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