नेता प्रतिपक्ष के रूप में तेजस्वी यादव का एक साल पूरा हो गया है। यह दौर सरकारी जांच एजेंसियों के चंगुल से बचने, पिता की बीमारी, अदालती चक्कर, परिवार की परेशानी और विपक्ष के बिखरे मोर्चे को एकीकृत करने में ही बीत गया। लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद पिछले एक साल के भीतर तीन मोर्चों पर तेजस्वी को अकेला लड़ना पड़ा। परिवार की प्रतिष्ठा और पार्टी के वजूद को बचाए-बनाए रखने के साथ ही खुद की पहचान को स्थापित करना भी उनके लिए बड़ी चुनौती थी।
लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद समान विचारधारा वाले दलों को एकजुट रखने-करने में तेजस्वी की ऊर्जा लगती रही। इस दौरान जीतनराम मांझी राजग छोड़कर महागठबंधन की शरण में आ गए तो इसका प्रत्यक्ष श्रेय भी तेजस्वी को ही देना पड़ेगा। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनके पहले वक्तव्य ने पार्टी के भीतर की संभावित चुनौती को न केवल खत्म कर दिया, बल्कि विरोधी खेमे में भी सराहना हुई।
एक साल के दौरान विपक्ष ने जो भी मुद्दे उठाए, उसपर अधिकतर मामलों में तो राज्य सरकार ने कार्रवाई भी की। चाहे भागलपुर का सृजन घोटाला हो या मुजफ्फरपुर का दुष्कर्म कांड। दोनों ही मामलों में विपक्ष के स्टैंड के बाद सरकार ने सीबीआइ जांच की सिफारिश कर दी। विपक्ष के रूप में इसे तेजस्वी अपनी सफलता कह ही सकते हैं।