लखनऊ। भगवाध्वज त्याग व समर्पण का प्रतीक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस परम पवित्र भगवाध्वज को ही गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया है। प्रतिदिन सभी शाखा पर स्वयंसेवक इसी की छत्रछाया में एकत्रित हो भारतमाता को परमवैभव पर ले जाने की साधना करते हैं। यह बातें विश्व संवाद केन्द्र लखनऊ के कार्यालय प्रमुख दर्शन कुमार ने कही। वह मंगलवार को विश्व संवाद केन्द्र के अधीश सभागार में गुरू पूर्णिमा उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम में कही।
उन्होंने कहा कि हमारे भारतवर्ष में आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। आज भी सभी मत, पंथ और संप्रदाय में गुरु पूर्णिमा को बड़े धूमधाम से श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा को ही महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने ही वैदिक ऋचाओं को एकत्रित कर चार वेदों की रचना की। इस कारण उन्हें महर्षि वेद व्यास भी कहते हैं। उन्होंने ही महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों की रचना की थी जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ का भी समावेश है। वैदिक ज्ञान को धरातल में लानेवाले वेदव्यास को आदिगुरु की संज्ञा दी गई है और उन्हीं के सन्मान में व्यास पूर्णिमा को ‘गुरु पूर्णिमा’ के नाम से मनाया जाता है।
भारत के सभी सम्प्रदायों और पंथों में गुरु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। प्रत्येक समाज में सबसे पहले गुरु की वंदना होती है। पुराणों ने गुरु को सर्वप्रथम पूजनीय बताया है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में गुरु की भूमिका सबसे अधिक होती है। शिष्य अपने गुरु के बताए पथ पर आगे बढ़ता है। शिष्य के जीवन में सदाचार, कौशल, ज्ञान और बुद्धिमत्ता का विकास गुरु की कृपा से ही संभव होता है। इसलिए शिष्य को गुरु का कृपापात्र होना जरुरी होता है।