Tuesday , January 7 2025

Shivani Dinkar

जब न्यूड हो कर निकली महिलाएं…

न्यूड हो कर निकली महिलाएं.

रिकॉर्ड बनाना जैसे एक चैलेंज बन चुका है या ये कहें रिकॉर्ड बनाने में सभी को मज़ा आने लगा है जिसके चलते कहीं न कहीं ऐसे रिकॉर्ड बनाये जाते हैं जो हमे हैरान कर देते हैं. कहीं खाने के रिकॉर्ड बनते हैं तो कहीं न्यूड होने के. जी हाँ, न्यूड …

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एक बिल की वजह से तोड़ दी शादी, फिर की ब्रेकअप पार्टी

एक बिल की वजह से तोड़ दी शादी, फिर की ब्रेकअप पार्टी

वैसे तो शादी के बाद अजीबो-गरीब कारणों से टूटे हुए कई रिश्तों के बारे में आपने सुना होगा यह काफी आम बात है लेकिन अगर शादी किसी बिल को लेकर ठीक उसी दिन टूट जाए जिस दिन शादी होने वाली हो तो यह थोड़ा अजीब है. ऐसा ही कुछ हुआ …

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सीजफायर खत्‍म होते ही तालिबान आतंकियों का बड़ा हमला, 30 अफगान सैनिकों की ली जान

ईद के मौके पर लागू सीजफायर के खत्‍म होते ही तालिबान आतंकियों ने अफगान सैनिकों पर बड़ा हमला किया। आतंकियों ने बुधवार को 30 अफगान सैनिकों की हत्‍या कर दी और बडघिस के पश्‍चिमी प्रांत में सैन्‍य शिविर पर कब्‍जा कर लिया। यह जानकारी प्रांत के गर्वनर ने दी। तालिबान की ओर से घोषित सीजफायर रविवार को समाप्‍त हो गया था। सीजफायर के खत्‍म होने के बाद यह पहला बड़ा हमला है जिसमें इतने सैनिकों को निशाना बनाया गया है। प्रांत के गवर्नर अब्दुल कफूर मलिकजई ने बताया कि दो सुरक्षा चौकियों पर तालिबान ने हमला बोला। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इनमें से एक बालमेरघब के जिला स्‍थित एक सैन्‍य ठिकाने को निशाना बनाया गया था। ADVERTISING inRead invented by Teads कई दिशाओं से भारी संख्या में तालिबानी आतंकी आए और एक साथ हमला कर दिया। घंटों तक की गई गोलीबारी में 30 अफगानी सैनिक मारे गए और इसके बाद तालिबान ने सैन्‍य शिविर पर कब्जा कर लिया। उन्होंने बताया कि तालिबान के खिलाफ अन्य क्षेत्रों में मंगलवार रात से जारी सुरक्षा अभियानों में 15 आतंकी मारे गए हैं। इस बीच तालिबान ने इस घटनाक्रम पर अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं की है। नहीं रहा सीजफायर के ऐलान का मतलब, तालिबानी हमले में मारे गए 20 अफगानी सैनिक यह भी पढ़ें बदघिस पुलिस के प्रवक्ता नकीबुल्लाह अमीनी ने तालिबान के हमले में 30 सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि करते हुए कहा इसी जिले में अन्य सुरक्षा चौकियों पर तालिबान ने अलग-अलग हमले कर चार सैनिकों की हत्या कर दी है। सरकार की तरफ से घोषित एक तरफा संघर्ष विराम बुधवार को समाप्त होने वाला था और राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इसे अगले दस दिनों के लिए बढ़ा दिया है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इससे तालिबान को सरकार के कब्जे वाले क्षेत्रों में आने में कोई दिक्कत नहीं होती है और वे राजधानी काबुल में बेखौफ घूम रहे हैं। काबुल में तैनात एक पश्चिमी राजनयिक सरकार की इस घोषणा पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा था कि इसके नतीजे काफी विनाशकारी साबित होंगे। अमेरिका के नेतृत्‍व में नाटो फोर्सेज को बाहर निकालने के लिए तालिबान लड़ाई कर रहा है साथ ही यह अमेरिका समर्थित गनी सरकार को हटाकर शरिया या इस्‍लामिक कानून लाना चाहता है।

ईद के मौके पर लागू सीजफायर के खत्‍म होते ही तालिबान आतंकियों ने अफगान सैनिकों पर बड़ा हमला किया। आतंकियों ने बुधवार को 30 अफगान सैनिकों की हत्‍या कर दी और बडघिस के पश्‍चिमी प्रांत में सैन्‍य शिविर पर कब्‍जा कर लिया। यह जानकारी प्रांत के गर्वनर ने दी। तालिबान …

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दक्षिणी सूडान में तैनात भारतीय शांतिरक्षकों की संयुक्‍त राष्‍ट्र ने की सराहना

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने दक्षिणी सूडान में शांति और सुरक्षा स्थापित करने में भारतीय शांतिरक्षकों के योगदान की सराहना की है। युद्ध के कारण चरमराई अर्थव्यवस्था और अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किए जा रहे लोगों की सहायता के लिए यूएन ने सूडान में शांति रक्षा मिशन की शुरुआत की थी। दक्षिणी सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमआइएसएस) के एक बयान में कहा गया है कि भारतीय शांतिरक्षकों ने देश के उत्तर-पूर्वी शहर अकोबो के जॉनग्लेइ क्षेत्र में गत फरवरी में अस्थायी बेस की शुरुआत की थी। भारतीय शांतिरक्षक बड़ी संख्या में विस्थापित हुए इस क्षेत्र के लोगों की सुरक्षा के साथ ही जरूरतमंदों को मानवीय सहायता भी पहुंचा रहे हैं। क्षेत्र में कई आश्रय स्थलों का भी निर्माण किया गया है। शांतिरक्षक पूरे क्षेत्र में गश्त करते हैं जिससे स्थानीय समुदाय का आत्मविश्वास बढ़ा है और वह खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सूडान में तैनात भारतीय बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल नेगी ने कहा, '40 डिग्री तापमान, भारी बारिश और अन्य समस्याओं के बावजूद शांतिरक्षक लोगों को सुरक्षा देने और शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।' उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश और इथोपिया के बाद सबसे अधिक भारतीय शांतिरक्षक ही संयुक्त राष्ट्र मिशन पर तैनात हैं। अप्रैल, 2018 तक 2,341 भारतीय शांतिरक्षक यूएनएमआइएसएस में योगदान दे रहे थे।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने दक्षिणी सूडान में शांति और सुरक्षा स्थापित करने में भारतीय शांतिरक्षकों के योगदान की सराहना की है। युद्ध के कारण चरमराई अर्थव्यवस्था और अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किए जा रहे लोगों की सहायता के लिए यूएन ने सूडान में शांति रक्षा मिशन की शुरुआत …

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अमेरिका ने यूएन मानवाधिकार परिषद से बाहर होने का किया एलान, ये है वजह

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद पर बेशर्म और पाखंडी होने का आरोप लगाते हुए अमेरिका इस वैश्विक संस्था से बाहर निकल आया है। इसका कहना है कि परिषद जहां गलत काम करने वालों पर चुप्पी साध लेती है, वहीं बेगुनाह देशों की गलत आलोचना करती रहती है। अमेरिका अब किसी पाखंडी संस्था का भाषण नहीं सुनेगा। वाशिंगटन के मानवाधिकार परिषद से बाहर आने का एलान संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली रंधावा ने किया। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मानवाधिकार का उल्लंघन करने वाले देश लगातार परिषद में बने हुए हैं। उन्होंने इस पर इजरायल के प्रति भेदभाव और शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने का भी आरोप लगाया। रंधावा ने कहा कि मानवाधिकार परिषद से बाहर आने का मतलब मानवाधिकार के प्रति वचनबद्धताओं से हमारा पीछे हटना नहीं है। दरअसल, हमने यह कदम उठाया ही इसलिए है कि हमारी प्रतिबद्धता हमें किसी पाखंडी संस्था में बने रहने की इजाजत नहीं दे रही है। हम किसी ऐसी संस्था में नहीं बने रह सकते, जिसने मानवाधिकार का मजाक बनाकर रख दिया है।पत्रकार वार्ता में रंधावा के साथ मौजूद अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा कि हमें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि किसी समय इसका उद्देश्य बहुत अच्छा था। लेकिन, आज यदि ईमानदारी से कहा जाए, तो यह मानवाधिकारों की रक्षा करने में नाकाम साबित हो रहा है। चीन, क्यूबा और वेनेजुएला जैसे देश भी इसके सदस्य बने हुए हैं, जिनका मानवाधिकार रिकॉर्ड अस्पष्ट और घृणास्पद रहा है। ...तो इसलिए अमेरिका ने फिर दी यूएन मानवाधिकार परिषद से निकलने की धमकी यह भी पढ़ें संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली रंधावा ने पिछले साल ही सदस्यता वापस लेने की धमकी दी थी। उस समय उन्होंने इजरायल के खिलाफ परिषद पर पक्षपात करने का आरोप लगाया था। लेकिन मंगलवार की घोषणा यूएन मानवाधिकार परिषद प्रमुख द्वारा ट्रंप प्रशासन की निंदा किए जाने के एक दिन बाद की गई है। एक दिन पहले यूएन मानवाधिकार परिषद प्रमुख ने अप्रवासी बच्चों को उनके माता-पिता से अलग करने के लिए ट्रंप प्रशासन की निंदा की थी। सीरिया करने जा रहा निरस्‍त्रीकरण अधिवेशन की अध्‍यक्षता, अमेरिका बोले- ये क्‍या मजाक है? यह भी पढ़ें गौरतलब है कि अमेरिका ने पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्‍ल्‍यू बुश के शासन काल में भी तीन साल तक मानवाधिकार परिषद का बहिष्‍कार किया था, लेकिन ओबामा के राष्‍ट्रपति बनने के बाद 2009 में वह इस परिषद में फिर से शामिल हुआ था।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद पर बेशर्म और पाखंडी होने का आरोप लगाते हुए अमेरिका इस वैश्विक संस्था से बाहर निकल आया है। इसका कहना है कि परिषद जहां गलत काम करने वालों पर चुप्पी साध लेती है, वहीं बेगुनाह देशों की गलत आलोचना करती रहती है। अमेरिका अब किसी पाखंडी …

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सीने में दर्द की शिकायत के बाद एक बार फिर अस्पताल में भर्ती हुए लालू

सीने में दर्द की शिकायत के बाद एक बार फिर अस्पताल में भर्ती हुए लालू

बहुचर्चित चारा घोटाले मामले में सजायाफ्ता बिहार के पू्र्व सीएम लालू यावद को फिर से अस्पताल में भर्ती कराया गया है. आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) अध्यक्ष लालू को मंगलवार को मुंबई के अस्पताल में शाम 5 बजे के करीब भर्ती कराया गया. सीने में दर्द की शिकायत के बाद यादव …

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Timeline: पढ़ें, J&K में BJP-PDP सरकार बनने से लेकर अब तक का घटनाक्रम

Timeline: पढ़ें, J&K में BJP-PDP सरकार बनने से लेकर अब तक का घटनाक्रम

अचानक से लिए गए फैसले में बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) ने पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) से मंगलवार को समर्थन वापस ले लिया. इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) की सरकार गिर गई और एक राज्य में बीजेपी की सरकार कम हो गई. इस्तीफा देने के बाद महबूबा …

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जम्मू-कश्मीर में क्यों टूटा बीजेपी-पीडीपी गठबंधन? ये है बड़ी वजह

रातनीति में यह तय है की कुछ भी तय नहीं है. करीब तीन साल पहले राजनीतिक विचारधारा को दरकिनार कर सत्ता के लिए एकजुट हुई भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कल एक-दूसरे से नाता तोड़ लिया. सूबे में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है. यानि केंद्र अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में शासन चलाएगी. गठबंधन टूटने के पीछे दोनों पार्टी एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रही है. बीजेपी कल तक सरकार में रहने के बावजूद आरोप लगा रही है कि महबूबा मुफ्ती आतंकवाद को रोकने में नाकामयाब रही. वहीं पीडीपी का कहना है कि घाटी में जोर-जबरदस्ती की नीति कारगर नहीं होगी. गठबंधन टूटने की ये वो वजहें हैं जो आधिकारिक प्रेस कांफ्रेंस में गिनाई गई. लेकिन असल कारण केवल यही नहीं है. दरअसल, फरवरी 2015 में जब बीजेपी-पीडीपी ने गठबंधन का रास्ता चुना तभी से यह सवाल उठने लगा था कि यह गठबंधन कितने दिनों तक खींचेगी? तब मुफ्ती मोहम्मद सईद (दिवंगत) ने कहा था कि यह नॉर्थ पोल और साउथ पोल का गठबंधन है. हालांकि दोनों दलों ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का फॉर्मूला तैयार किया और सरकार चलती रही. लेकिन बीजपी और पीडीपी के बीच वैचारिक मतभेद कभी कम नहीं हुई. अफस्पा, अनुच्छेद 35ए, अलगाववादियों की गिरफ्तारी, पाकिस्तान से बातचीत, कठुआ गैंगरेप जांच को लेकर बीजेपी-पीडीपी में मतभेद ही नहीं मनभेद भी रहे. BJP के समर्थन खींचने के बाद जम्मू-कश्मीर में गिरी महबूबा सरकार, राज्यपाल शासन लागू अनुच्छेद 370: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कश्मीर को लेकर पूरे देश में प्रचारित करती रही है कि वह अनुच्छेद 370 को लेकर उसका रुख साफ है और वह खत्म करेगी. वहीं पीडीपी किसी भी कीमत पर इसके लिए न तैयार थी और न ही होगी. यही वजह थी की कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में अनुच्छेद 370 को अलग रखा गया था. कल ही पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हमें संविधान के अनुच्छेद 370 और राज्य के विशेष दर्जे के बारे में आशंका थी. हमने अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए की रक्षा की है. क्या है धारा 370? साल 1954 में राष्ट्रपति के एक आदेश के बाद संविधान में यह अनुच्छेद जोड़ा गया था, जो जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को विशेषाधिकार प्रदान करता है, और राज्य विधानसभा को कोई भी कानून बनाने का अधिकार देता है, जिसकी वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती. यह अनुच्छेद जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को छोड़कर बाकी भारतीय नागरिकों को राज्य में अचल संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी पाने और राज्य सरकार की छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ लेने से रोकता है. सुरक्षाबलों को मिली बड़ी कामयाबी, त्राल में जैश के ऑपरेशन कमांडर सहित तीन ढेर अनुच्छेद 35 ए: अनुच्छेद 35 ए अनुच्छेद 370 का ही हिस्सा है. इसपर बीजेपी और पीडीपी में शुरुआत से ही मतभेद रहा है. अनुच्छेद 35 ए के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेषाधिकार और सुरक्षा हासिल है. पीडीपी इस अनुच्छेद को सुरक्षित रखना चाहती है और बीजेपी देश के सभी नागरिकों के लिए समान विशेषाधिकार चाहती है. इस धारा को एनजीओ वी द सिटिजन्स ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर केंद्र सरकार ने कहा है कि इस धारा को असंवैधानिक घोषित करने के लिए इस मुद्दे पर पर्याप्त बहस करने की जरूरत है. अफस्पा: जम्मू-कश्मीर में अफ्सपा यानि (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट) लागू है. केंद्र इसे हटाने पर सहमत नहीं है वहीं पीडीपी इसे हटाने के पक्ष में रही है. सेना का आतंकियों के खिलाफ बड़े स्तर पर राज्य में ऑपरेशन जारी है. ऐसे समय में केंद्र सरकार झुके यह संभव नहीं था. अफस्पा सेना को 'डिस्टर्ब्ड एरिया' में कानून व्यवस्था बनाए रखने की ताकत देता है. इसके तहत सेना पांच या इससे ज्यादा लोगों को एक जगह इक्ट्ठा होने से रोक सकती है. इसके तहत सेना को वॉर्निंग देकर गोली मारने का भी अधिकार है. ये कानून सेना को बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की ताकत देता है. इसके तहत सेना किसी के घर में बिना वारंट के घुसकर तलाशी ले सकती है. जम्मू कश्मीर: आखिर महबूबा मुफ्ती से चूक कहां हो गई? पाकिस्तान से बातचीत: कश्मीर में आतंकियों को भेजने की फैक्ट्री पाकिस्तान को लेकर पीडीपी और बीजेपी में विवाद रहा. सीमा पर पाकिस्तान की तरफ से लगातार गोलीबारी और आतंकियों की घुसपैठ के बावजूद पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान से बातचीत का राग अलापती रही. वहीं केंद्र की बीजेपी सरकार ने साफ कर दिया की वह तब तक बातचीत नहीं करेगी जबतक कि पाकिस्तान सीमा पर शांति बहाल नहीं करता है. रमजान सीजफायर: रमजान के मौके पर जम्मू-कश्मीर में सीजफायर लागू करने के लिए महबूबा मुफ्ती ने दबाव बनाया था. जिसके बाद केंद्र ने 16 मई को सीजफायर की घोषणा की. जिसकी वजह से आतंकी वारदातों में बढ़ोतरी हुई. केंद्र सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. पिछले दिनों केंद्र ने फिर से सीजफायर खत्म कर दिया. अलगाववादियों की गिरफ्तारी: केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद अलगाववादियों के खिलाफ बड़े स्तर पर कार्रवाई शुरू हुई. टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में शब्बीर शाह समेत कम से कम 11 अलगाववादी नेताओं को केंद्रीय जांच एजेंसियों ने गिरफ्तार किया. पीडीपी का कहना था कि गिरफ्तारी से राज्य की स्थिति और खराब हो सकती है. इन कारणों से बीजेपी ने छोड़ा महबूबा मुफ्ती का 'साथ' पत्थरबाजी: जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों के खिलाफ पत्थरबाजी आम है. पीडीपी हमेशा पत्‍थरबाजों पर रहम की मांग करती रही है. जब पत्थरबाजों से बचने के लिए मेजर लीतुल गोगोई ने एक शख्स को मानव ढाल बनाया तो जम्मू-कश्मीर सरकार उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से भी नहीं चूकी. वहीं बीजेपी की इस मामले में बिल्कुल अलग राय है. वह पत्थरबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का दावा करती रही है. कठुआ गैंगरेप: जम्मू-कस्मीर में नाबालिग लड़की से गैंगरेप के मामले की जांच को लेकर राज्य बीजेपी के कई नेता और मंत्री सवाल उठाते रहे. बीजेपी के दो मंत्रियों ने आरोपियों के पक्ष में रैलियां निकाली. दोनों मंत्रियों को काफी आलोचनाओं के बाद इस्तीफा देना पड़ा.

रातनीति में यह तय है की कुछ भी तय नहीं है. करीब तीन साल पहले राजनीतिक विचारधारा को दरकिनार कर सत्ता के लिए एकजुट हुई भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कल एक-दूसरे से नाता तोड़ लिया. सूबे में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है. …

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मंत्री अखिलेश्वरानंद ने शिवराज सरकार से की मांग, MP में बने ‘गौ मंत्रालय’

मंत्री अखिलेश्वरानंद ने शिवराज सरकार से की मांग, MP में बने 'गौ मंत्रालय'

गौ सेवा को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेताओं की अलग-अलग मांगों के बीच अब मध्य प्रदेश सरकार के दर्जा प्राप्त कैबिनेट मंत्री अखिलेश्वरानंद ने कहा है कि सूबे में ‘गौ मंत्रालय’ बने. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री खुद भी किसान हैं और मेरे जैसे कई लोग उनकी मदद करेंगे. मुझे …

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क्या PDP से गठबंधन तोड़ने के पीछे छिपी है 2019 के चुनाव की रणनीति?

जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार गिराने के लिए बीजेपी ने यही समय क्यों चुना? सवा तीन साल से पीडीपी के साथ सरकार चला रही बीजेपी के सामने अचानक कौन सी मजबूरी आन पड़ी? जानकारों की मानें तो इसके पीछे 2019 के चुनाव की रणनीति छिपी है. फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है. बीजोपी को था कोर वोट बैंक खो देने का खतरा! 2019 के लोकसभा चुनाव में अब साल भर से भी कम का वक्त बचा है और बीजेपी महबूबा को मनाते-मनाते अपना कोर वोट बैंक गंवा न दे, इसका खतरा लगातार बना हुआ था. कठुआ रेप कांड के बाद बीजेपी जम्मू के लोगों की नाराजगी झेल ही रही है. इसका संक्रमण चुनाव के पहले पूरे देश में फैलने न पाए, इसको लेकर बीजेपी के रणनीतिकार लगातार मंथन कर रहे थे. इसलिए बीजेपी के पास महबूबा सरकार से हाथ खींचने के अलावा कोई चारा नहीं था. बिगड़ती जा रही थी कानून व्यवस्था जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी सरकार बनने के बाद कानून व्यवस्था सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही थी. इसका सबसे ताजा उदाहरण रमजान के दौरान सुरक्षाबलों के एकतरफा युद्धविराम के दौरान दिखा. महबूबा मुफ्ती की मांग पर केंद्र ने सुरक्षाबलों ने कश्मीर घाटी में सर्च ऑपरेशन औऱ संदिग्ध आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रुकवा दिया, लेकिन आतंकी वारदातें नहीं रुकीं. रमजान में घटी नहीं बल्कि बढ़ीं आतंकी वारदातें रमजान महीने के पहले 16 अप्रैल से 15 मई तक 25 आतंकी हमले हुए. लेकिन रमजान के दौरान यानि 16 मई से 15 जून के दौरान ये तीन गुना बढ़कर 66 हो गईं. रमजान से पहले महीने में आतंकियों ने पांच ग्रेनेड अटैक किए, लेकिन रमजान के महीने में 22 ग्रेनेड अटैक हुए. रमजान से पहले पांच सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, जबकि रमजान के दौरान सात सुरक्षाकर्मियों ने शहादत दी. 29 जून से शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा रमजान महीना तो भारी अशांति के बीच गुजर गया. अब 29 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है. खुदा न खास्ता इस यात्रा के दौरान कोई अनहोनी हो गई तो बीजेपी को जवाब देना मुश्किल पड़ सकता था. पिछले साल अमरनाथ यात्रियों की बस पर आतंकी हमले में गुजरात के सात श्रद्धालुओं की मौत के बाद बीजेपी को अपने कैडर और देश को जवाब देने में लेने के देने पड़ गए थे. फिर सुनाई दे सकती है धारा 370 की गूंज महबूबा मुफ्ती सरकार से हटने के बाद बीजेपी 2019 के अपने एजेंडे पर ज्यादा फोकस कर सकेगी. सवा तीन साल से धारा 370 पर बीजेपी नेता मौन हो गए थे. अब 23 जून को श्यामाप्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कश्मीर जा रहे हैं. जहां फिर धारा 370 की गूंज सुनाई दे सकती है, जो कम से कम अगले साल के आम चुनाव तक जाएगी. अब अपने मन मुताबिक काम करेगी केंद्र सरकार! कहा ये भी जा रहा है कि घाटी में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद केंद्र सरकार अपने मन मुताबिक काम करेगी. आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट रफ्तार पकड़ेगा तो अलगाववादी नेताओं पर भी कोई मुरव्वत नहीं होगी. पत्थरबाज़ों के लिए महबूबा के दिल में जो हमदर्दी थी, उस पर सुरक्षाबल अब खुलकर चोट करेंगे. इस एकतरफा और अचानक किए फैसले से बीजेपी की राष्ट्रवादी छवि पर फिर से शान भी चढ़ेगी. वहीं कठुआ गैंगरेप जैसे विवाद सामने आने के बाद बीजेपी की छवि खराब हुई थी. जम्मू के लोग पूरे मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने इस मांग को ठुकरा दिया था, जिससे बीजेपी की राजनीतिक जमीन भी कमजोर हुई थी.

जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार गिराने के लिए बीजेपी ने यही समय क्यों चुना? सवा तीन साल से पीडीपी के साथ सरकार चला रही बीजेपी के सामने अचानक कौन सी मजबूरी आन पड़ी? जानकारों की मानें तो इसके पीछे 2019 के चुनाव की रणनीति छिपी है. फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल …

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