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बोलना भी है मना, सच बोलना तो दरकिनार

 

mulayamसियाराम पांडेय‘शांत’

उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की कलह के मद्देनजर दुष्यंत कुमार की एक गजल न जाने क्यों बार-बार याद आ रही है-‘बोलना भी है मना, सच बोलना तो दरकिनार।’  कुछ लोगों को इस पर आपत्ति हो सकती है लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने कुछ घंटे पहले ही इस बात को पूरी तरह सच कर दिखाया है। यह साबित कर दिया है कि 25 साल पुरानी समाजवादी पार्टी में अब लोकंत्रिक समाज की कोई अहमियत नहीं रह गई है और ‘निंदक नियरे राखिए’ जैसी अवधारणा को लिए तो यहां वैसे भी कोई जगह नहीं है। 

 सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को पत्र के जरिए आईना दिखाना विधान परिषद सदस्य उदयवीर सिंह को महंगा पड़ गया है। उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में छह साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। यह अलग बात है कि उदयवीर अपने पत्र की तहरीर पर आज भी कायम हैं। होना तो यह चाहिए था कि पत्र की उपादेयता और औचित्य पर विचार होता। पत्र लिखने की वजह जानी जाती और इस तरह  के पत्र लिखने की दोबारा जरूरत न पड़े, इस पर मंथन होता लेकिन  पार्टी के ज्यादातर वरिष्ठों को इस पत्र में नेताजी का अपमान ही दिखा लेकिन पत्र लिखने-समझने की वजह जानने-समझने की किसी ने भी जरूरत नहीं समझी। सबने बस एक ही राग आलापा कि नेताजी का अपमान नाकाबिले बर्दाश्त है। ऐसा होना भी चाहिए।

 उदयवीर सिंह  पर कार्रवाई के चंद लम्हे बाद ही सपा के एक अन्य नेता सुनील साजन ने भी भावुकता भरा बयान दे दिया कि अगर पार्टी के  बड़े नेता अपनी जिम्मेदारी भूल गए हों, सही निर्णय नहीं ले पा रहे हों  तो उन्हें जगाने का काम युवाओं का होता है। इसका मतलब साफ है कि सपा में दो पीढ़ियों के बीच वर्चस्व की जंग तेज हो गई है। कल जब सपा के प्रदेश अध्यक्ष  शिवपाल यादव ने यह कहा था कि अखिलेश अगर कहें तो वह प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने को तैयार हैं तो लगा था कि शिवपाल मान-मनौव्वल की राह पर हैं और मध्य का रास्ता निकाल रहे हैं लेकिन आज जिस तरीके से उन्होंने सपा की नई यूथ विंग गठित की है, उससे तो हरगिज नहीं लगता कि वे अखिलेश समर्थकों को बख्शने के मूड में हैं। यह तो एक तरह से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जले पर नमक छिड़कने जैसा है। इस तरह से तो परिवार की एकता बनती नहीं। एक ओर तो शिवपाल यादव यह कह रहे हैं कि उनके लिए पार्टी पहले है। पद मायने नहीं रखता। वहीं वे आक्रोश और असंतोष की चिनगारी पर प्रतक्रियात्मक कार्रवाई का घी डालकर उसे भड़काने का भी कोई मौका नहीं चुन रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने तो यहां तक कह दिया है कि प्रबल विरोधी होने के बावजूद अटल बिहारी वाजेपेयी और कल्याण सिंह ने भी उनकी पत्नी पर आरोप नहीं लगाया लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता उनकी पत्नी पर तोहमत लगा रहे हैं। यह तो उचित नहीं है। जब अखिलेश यादव अपने सभी समर्थकों से यह अपील कर चुके हैं कि कोई भी नेता जी को इस तरह का पत्र न भेजें लेकिन कार्यकर्ताओं की भावनाओं को नियंत्रित तो नहीं किया जा सकता।

शिवपाल यादव जिस तरह  अखिलेश समर्थकों को अनुशासनहीनता के आरोप में एक-एक कर निशाना बना रहे हैं, उससे मुख्यमंत्री का दिल नहीं दुखेगा, यह कैसे कहा जा सकता है? कल ही अखिलेश यादव ने यूथ विंग के साथ बैठक की है। उनकी बैठक के थोड़ी देर बाद ही  सपा यूथ विंग, लोहिया वाहिनी के नये अध्यक्षों का चयन चौंकाता तो है ही।

समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव को नीचा दिखाने का जो खेल लंबे समय से चल रहा है, उससे अखिलेश मर्माहत नहीं होंगे, यह कैसे कहा जा सकता है? यह उनकी भलमानसहत ही है कि इतने सब के बाद भी वह सपा के कल्याण की सोच रहे हैं। वे रथयात्रा निकालने और पार्टी को मजबूत करने की बात कर रहे हैं।  सच तो यह है कि उनके जख्मों को फिलहाल कोई देख भी नहीं रहा। पार्टी की जो साख बनी भी थी, उस पर मौजूदा कुनबाई कलह ने पानी फेर दिया है। ऐसे में एक कविता याद आती है-‘ जख्म दिल के हमने बरसों से छूकर नहीं देखे। जख्म क्या ठीक होगा और भी गहरा हुआ होगा।’

कैबिनेट मंत्री आजम खान ने बहुत ही पते की बात कही है कि इस नाजुक मामले में नादानी की बात नहीं होनी चाहिए। कार्रवाई बाद में भी की जा सकती थी। पहली जरूरत घर में लगी कलह की आग को बुझाने की है। पार्टी के कई दिग्गज इस बावत मध्यस्थता कर भी रहे हैं लेकिन बात हद से ज्यादा बिगड़ गई है।

मुलायम सिंह यादव परिवार बचाने में जुटे हैं और इस चक्कर में पार्टी का कबाड़ा तय है। जिस तरह मुलायम, अखिलेश और शिवपाल अलग अलग विधायकों, सांसदों, जिला अध्यक्षों की बैठकें कर रहे हैं, उससे प्रदेश में सकारात्मक संदेश तो नहीं जाता। अगर शिवपाल यादव वाकई पार्टी की बेहतरी को लेकर प्रतिबद्ध हैं तो उन्हें कार्रवाई और यूथ विंग के नए अध्यक्षों के चयन की आतुरता तो नहीं ही दिखानी चाहिए थी।

सच तो यह है कि समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के परिवार में चल रही कलह थमने का नाम नहीं ले रही। पार्टी और परिवार में जारी कलह और विधानसभा चुनाव नजदीक आते देख सुलह की कोशिशें भी लगातार जारी है। इसी कोशिश के तहत शनिवार को समाजवादी पार्टी के 4 वरिष्ठ नेता किरणमय नंदा, बेनी प्रसाद वर्मा, रेवतीरमण सिंह और नरेश अग्रवाल पहले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से लखनऊ में मिले।  फिर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ उन्होंने लंबी बैठक की लेकिन सुलह का कोई सर्वमान्य फार्मूला तय नहीं हो सका। मुख्यमंत्री इस बात पर अड़े हैं कि अनुशासनहीनता के आरोप में निकाले गए युवा नेताओं की बाइज्जत पार्टी में उनके पदों पर बहाली की जाए लेकिन नेताजी और शिवपाल इसके लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में अखिलेश यादव के पास पिता और चाचा का शालीनता  से विरोध करने के सिवा कोई विकल्प नहीं है। सपा के लिए बड़ा लक्ष्य पार्टी की एकजुटता और यूपी में चुनाव जीतना है, छोटे-छोटे मुद्दों पर कलह हितकारी नहीं है।

चर्चा, पर्चा और खर्चा के लोहियावादी सिद्धान्तों सेे भटक चूकी समाजवादी में विमर्श अब दूर की कोैड़ी है।वसीम बरेलवी का शेर घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद के है,पहले यह तो तय हो कि घर को बचायें कैसे। समाजवादी पार्टी भी कमोवेश इसी दंश को झेल रही है रोग लाइलाज हो चला है । पीर तो तभी मिटेगी जब वैद्य समझदार हो।

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