नई दिल्ली. भारत के महान नेता पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से सिर्फ हमारे देश ने ही नहीं, बल्कि दुनिया ने एक उदार राजनीतिज्ञ खो दिया है. अटल बिहारी वाजपेयी जैसा शख्स सिर्फ एक देश का हो ही नहीं सकता, वह तो विश्व नेता थे. समय-समय पर दुनिया के विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों का भारत दौरा रहा हो या अटल बिहारी वाजपेयी किसी देश के दौरे पर गए हों, उनके लिए हर देश में पलक पांवड़े बिछाए गए.

वाजपेयी ने इसकी झलक संयुक्त राष्ट्रसंघ (UN) में हिन्दी में दिए गए अपने भाषण में ही दे दी थी. आपको याद होगा अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का दौरा या रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ वाजपेयी की मुलाकात या फिर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के साथ भेंट, अटलजी किसी भी देश के नेता से सहजता से मिलते थे. खासकर, शीतयुद्ध के बाद बनी दुनिया की परिस्थिति में अमेरिका और भारत के बीच संबंधों को जिस तरह से अटल बिहारी वाजपेयी ने एक दिशा दी, वह काबिल-ए-तारीफ थी. गौरतलब यह है कि भारत के परमाणु परीक्षण करने के बाद कई तरह की मुश्किलों दुनिया के विकसित देशों ने खड़ी की थी, लेकिन यह वाजपेयी ही थे जिनकी अद्भुत कार्य-कुशलता की वजह से हमारा देश जल्द ही ऐसी स्थितियों से पार पा गया.

22 वर्षों के बाद कोई अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आया
वर्ष 1978 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर भारत आए थे. उस समय भारत और रूस के बीच का संबंध मजबूत था. साथ ही 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद पनपी स्थितियों में अमेरिका हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान के ज्यादा करीब हो गया था. इस वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के बीच तनावपूर्ण संबंधों की झलक पूरी दुनिया ने देखी थी. लेकिन इसके 22 वर्षों के बाद वर्ष 2000 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत आए, उस समय की स्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी थी.

भारत परमाणु-क्षमता से संपन्न देश बन चुका था. रूस अब सोवियत यूनियन नहीं रह गया था. वहीं अमेरिका के ऊपर से भी अब पाकिस्तान-परस्त होने की छाप मिटने लगी थी. ऐसे समय में अटल बिहारी वाजपेयी और बिल क्लिंटन ने मिलकर भारत-अमेरिका संबंधों की नई बुनियाद रखी. आज जब हमारा देश अमेरिका से विभिन्न क्षेत्रों में समझौते कर रहा है, यह कहीं न कहीं अटल बिहारी वाजपेयी की ही देन है.