कस्बे में वन विभाग के डीयर पार्क में पल रहे हिरणों की जान साल में आठ महीने सांसत में रहती है। वन विभाग के पास उन्हें चारा खिलाने के लिए चार महीने जितना ही बजट है। शेष आठ महीने उन्हें दानदाताओं के भरोसे रहना पड़ता है। डीयर पार्क में वर्तमान में 52 हिरण व 2 चिंकारा हैं।
सन् 1983 में ग्रामीण योजना के तहत 10 हैक्टेयर वन भूमि पर पंचकुंड नर्सरी में डीयर पार्क शुरू किया गया। उस समय यहां मात्र 7 हिरण लाए गए। बाद में कभी पहाड़ी से आए पैंथर ने इनका शिकार कर डाला तो कई बीमारी से मर गए। इसके बावजूद इनकी संख्या लगातार बढ़ती गई। वर्तमान में डीयर पार्क में पल रहे 54 हिरण काप्रतिदिन चारे का खर्चा करीब 400 रुपए है, जबकि वन विभाग की ओर से सालभर के लिए कुल 50 हजार रुपए बजट दिया जाता है। यह राशि चार महीने में ही पूरी हो जाती है। शेष 8 महीने दानदाताओं के चारा डालने से हिरणों का पालण-पोषण हो रहा है।
वन विभाग का कहना है कि अप्रेल से जून तक गर्मी के मौसम में हरा चारा नहीं होता है। इस अवधि में बजट के 50 हजार रुपए चारे के लिए पर्याप्त हैं। जुलाई में बरसात का मौसम होने से हरा चारा उग जाता है तथा तीन महीने तक चारे की समस्या नहीं रहती। शेष छह महीने यानी अक्टूबर से मार्च तक चारे की व्यवस्था दानदाताओं के भरोसे रहती है। डीयर पार्क में हिरणों को शाम करीब चार बजे मक्की, बाजरा मिश्रित भोजन दिया जाता है। गर्मी में इसी समय हरा-चारा डाला जाता है। मनुष्यों से नहीं डरते : आमतौर पर हिरण इंसान से डरकर भागते हैं, लेकिन डीयर पार्क के हिरणों के साथ एेसा नहीं है। रोजाना लोगों के हाथों से चारा खाने के चलते उनका एेसा स्वभाव बन चुका है।
प्रचार-प्रसार का अभाव : पुष्कर में संचालित डीयर पार्क को लेकर आज भी बहुत से लोगों को जानकारी नहीं है। इसका कारण विभाग स्तर पर डीयर पार्क का पर्याप्त प्रचार-प्रसार नहीं होना है।