राम मंदिर निर्माण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले हलचल तेज हो गई है. कल अयोध्या में राम जन्म भूमि न्यास और वीएचपी से जुड़े साधु संतों की बैठक हुई. बैठक के बाद साधु संतों ने योगी सरकार और मोदी सरकार को राम मंदिर को लेकर अल्टीमेटम दिया. साधु-संतों ने सरकार से कहा है कि और राम भक्तों की भावना का आदर करते हुए जल्द से जल्द राम मंदिर का निर्माण शुरू होना चाहिए. वहीं इस बीच कल मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी हिंदू पक्षकार महंत धर्मदास से मिले.
सरकार को 30 अक्टूबर तक का अल्टीमेटम
दरअसल कल राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास ने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी सरकार है, फिर भी अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण जल्द शुरू नहीं हुआ तो साधु-संत ये काम खुद शुरू कर देंगे. गोपाल दास ने चेतावनी दी कि अगर जल्द से जल्द राम मंदिर का निर्माण शुरू नहीं हुआ तो केंद्र और यूपी सरकार को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा. हिंदूवादी संगठन धर्मसेना ने तो इसके लिए सरकार को 30 अक्टूबर तक का अल्टीमेटम भी दे दिया है.
हनुमानगढ़ी मंदिर में महंत धर्मदास से मिले इकबाल अंसारी
कल ही बाबरी मस्जिद के पक्षकार मोहम्मद इकबाल अंसारी हनुमानगढ़ी मंदिर में राम जन्म भूमि के पक्षकार महंत धर्मदास जी से मिलने पहुंचे. वहां उन्होंने गौशाला में गायों को चारा खिलाया. बताया जा रहा है कि दोनों के बीच सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर चर्चा हुई. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में राम जन्म भूमि मामले की अगली सुनवाई 20 जुलाई को होनी है.
राम मंदिर निर्माण के बिना पूरा विकास बेकार- महंत सुरेश दास
वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु माने जाने वाले दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास ने खुलासा किया कि योगी जी ने पीएम मोदी से साफ-साफ कह दिया है कि अयोध्या में बिना राम मंदिर निर्माण के पूरा विकास बेकार है, इसलिए अयोध्या में भव्य राम का मंदिर बनना चाहिए और वह खुद इस में लगे हैं.
क्या है राम मंदिर विवाद?
बता दें कि राम मंदिर का मुद्दा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है. साल 1989 में राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद ज़मीन विवाद का ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था. 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया. फैसला हुआ कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए जाए. राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया. राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को हिन्दू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया, तब से यथास्थिति बरकरार है.