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ट्रंप कर सकते हैं अमेरिकी नीतियों में ये ऐतिहासिक बदलाव, मीडिया के निशाने पर नये राष्‍ट्रपति..!

इन दिनों अमेरिका का मीडिया, नवनिर्वाचित राष्‍ट्रपति डोनॉल्‍ड ट्रंप के खिलाफ लगातार प्रचार कर रहा है। अमेरिका के चुनाव में रूस की मदद और अमेरिका में हैकिंग करवाने से लेकर, ट्रंप के यौन वीडियो तक होने की खबरें सारी दुनिया में फैलाई जा रही हैं। आखिर क्या वजह है कि दुनिया के सबसे ताकतवर लोकतांत्रिक देश में निर्वाचित राष्ट्रपति का शपथ लेना भी संदिग्ध दिखाई दे रहा है। अमेरिका की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के पूर्व सदस्य एंथनी मांटेरो ने इन वजहों पर से परदा उठाया है।

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एंथनी से सोशल नेटवर्किंग साइट स्काइप के जरिए मुलाकात कराई अर्चिष्मान राजू ने जो कि अमेरिका की कार्नेल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे हैं। एंथनी से बातचीत में इंदौर के बुद्धिजीवी और पत्रकार भी शामिल थे। बता दें कि 1984 में सोवियत संघ के विखंडन के बाद अमेरिका में कम्युनिस्ट पार्टी तकरीबन समाप्त हो चुकी है। आज की तारीख में अमेरिका में कम्युनिस्ट पार्टी के हजार सदस्य होंगे।

बहरहाल, एंथोनी फिलाडेल्फिया में रहते हैं, और अफ्रीकी-अमेरिकी मामलों के बारे में वहां के कॉलेजों में पढ़ाते रहे हैं। एंटनी ने चुनाव के बाद अमेरिका में ट्रंप को लेकर चल रही बातों और चर्चाओं के बारे में विस्‍तार से बताया। एंटनी ने जो बातें ट्रंप को लेकर बताईं और जो तस्वीर खींची, वह अमेरिका के समूचे मीडिया, डेमोक्रेटिक पार्टी और वहां की तमाम सरकारी एजेंसियों से बिल्‍कुल उलट ही रही। एंथनी का विश्लेषण भी उसका ठीक उलटा रहा।Raju-copy

एंथनी ने कहा कि अमेरिका के पिछले 100 साल  में ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई राष्ट्रपति यह कह रहा है कि वह रूस के साथ युद्ध नहीं चाहता। ट्रंप यह भी कहते हैं कि वे सीरिया में भी असद को उखाड़ फेंकना नहीं चाहते जैसा कि ओबामा व उनके पूर्ववर्ती अब तक करने की कोशिश करते रहे हैं। ट्रंप ने अरब देशो के बारे में भी यही कहा है कि उनका  वहां पर सत्ता को उलटने का इरादा नहीं है। जैसा कि लीबिया और इराक में अमेरिकी राष्ट्रपति कर चुके हैं। इसके साथ ही ट्रंप चीन के साथ भी बातचीत करना चाहते हैं, उसके साथ कारोबार बढ़ाना चाहते हैं।

उत्तर कोरिया के बारे में भी ट्रंप  का यही ख्याल है । ट्रंप का यह रुख अमेरिका के पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों के मुकाबले यू टर्न है, क्योंकि अमेरिका की विदेश नीति, रक्षा नीति  सहित तमाम नीतियों की धुरी भी रूस के विरोध और पूरी दुनिया में वह वर्चस्ववादी आक्रामक रवैया पर टिकी हुई है। ट्रंप ट्रांस पैसिफिक ट्रेड ट्रीटी  (टीएफटी) को खत्म करना चाहते हैं,  क्योंकि इसके तहत अमेरिका चीन को कारोबार को अलग- थलग रखना चाहता है। मालूम हो कि चीन के सामान की दुनिया भर में खपत है और अमेरिका में भी सबसे ज्यादा चीन का माल ही बिकता है।

एंथनी ने बताया कि ट्रंप को चुनाव जिताने वाले  87 प्रत्याशी प्रतिशत गोरे अमेरिकी हैं, जो ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। ट्रंप ने कहा है कि वह उनके लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करेंगे। अमेरिका के लोगों ने ट्रंप को नव उदारवादी नीतियों पर आधारित पूंजीवाद से तंग आकर चुना है, जिसके चलते कई लोग रोजगारों से हाथ धो बैठे हैं, और लाखों लोग गरीबी और अति गरीबी के शिकार हो गए हैं।

बता दें कि अमेरिका की 325 मिलियन जनसंख्या में से 100 मिलियन गरीब और अति गरीब हैं। अति गरीब वे हैं, जिनके पास सिर छिपाने के लिए भी जगह नहीं है। अमेरिका के 10% लोग बहुत अमीर हैं, शेष 90% लोग गरीब हैं। इनके बीच में गहरी खाई है। 3200 लाख  लोगों में से 15% अति गरीब है, इनमें अफ्रीकी लेटिन अमेरिकी और भारतीय अमेरिकियों को भी मिला लें तो यह संख्या 20% के लगभग हो जाती है।

ट्रंप के मुताबिक 2008 की मंदी के बाद से अमेरिका की वृद्धि दर 1.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकी है, ऐसे में यह सवाल है कि ट्रंप अमेरिका की युद्ध और दूसरे देशों में दखलअंदाजी पर आधारित उद्योगों को बढ़ावा ना देकर कौन सा तरीका लाएंगे जिससे वहां के लोगों को नौकरियां मिलेंगी।

कुल मिलाकर ट्रंप के निर्वाचन के बाद अमेरिका की सत्ता गहरे संकट में आ गई है कोई भी यह नहीं बता सकता कि आगे जाकर चीजें किस तरह की शक्ल ले लेंगी। अभी तो यह भी पता नहीं है कि ट्रंप 21 जनवरी को शपथ ले पाएंगे या नहीं। डेमोक्रेटिक के अलावा रिपब्लिकन पार्टी में भी उनके बहुत सारे विरोधी हैं, जो नहीं चाहते कि ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद का कार्यकाल पूरा करें। यदि राष्ट्रपति बन भी गए तो उन पर महाभियोग भी लगाया जा सकता है। ट्रंप ने भी यह नहीं सोचा था कि वे राष्ट्रपति बन जाएंगे।

दरअसल, ट्रंप ने वहां की खुफिया एजेंसी सीआईए पर भी आरोप लगाया है कि उससे उन्हें खतरा है। वे पहले राष्ट्रपति हैं, जिसने वहां की खुफिया एजेंसियों पर ही संदेह किया है। ट्रंप ने  अभी तक अमेरिका की सुरक्षा एजेंसी की सेवा भी नहीं ली है क्योंकि उन्हें उस पर भरोसा नहीं है। इसके बजाय ट्रंप ने अपनी सुरक्षा का जिम्मा एक निजी सुरक्षा कंपनी को दिया है। बता दें कि अमेरिका में ऐसी 23 सुरक्षा एजेंसियां हैं, जो निजी तौर पर सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराती है, वहीं ट्रंप अश्वेतों, मुसलमानों व प्रवासियों के विरुद्ध भी आग उगलते हैं, लेकिन वहीं उनका रवैया मुस्लिम देशो के साथ युद्ध न करने का और  वहीं पर वह वहां अमन बनाए रखने का भी है।

ट्रंप का दावा है कि डेमोक्रेट्स की युद्ध पिपासू नीतियों के चलते अमेरिका को 6 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो चुका है। एंथनी के मुताबिक एेसा भी नहीं है कि ट्रंप कोई शांति दूत हों। लेकिन अमेरिका के मतदाताओं ने अमेरिका की वर्चस्ववादी आक्रामक नीतियों के खिलाफ जो फैसला दिया है, उसे ट्रंप कितना लागू कर पाते हैं यह देखना दिलचस्‍प होगा।

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