“कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने पार्टी दबाव और गिरती लोकप्रियता के कारण इस्तीफा दिया। जानिए, इसके पीछे की वजहें, राजनीतिक संकट और इसका भारत-कनाडा संबंधों पर संभावित प्रभाव।”
कनाडा। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार शाम पद और लिबरल पार्टी के नेता के रूप में इस्तीफा दे दिया। उनका यह फैसला राजनीतिक दबाव, गिरती लोकप्रियता और पार्टी के भीतर असंतोष के कारण लिया गया। उनका कार्यकाल 2025 तक था, लेकिन पार्टी के भीतर गहराते मतभेदों और बढ़ती आलोचना के चलते उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा।
जस्टिन ट्रूडो का कार्यकाल:
प्रधानमंत्री बनने का सफर:
- 2015 में प्रधानमंत्री बनने वाले जस्टिन ट्रूडो ने 2019 और 2021 में दोबारा चुनाव जीता।
- उन्होंने प्रगतिशील नीतियों, समलैंगिक अधिकार, जलवायु परिवर्तन और शरणार्थियों के लिए उदार रुख अपनाया।
महत्वपूर्ण नीतियां:
- स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का विस्तार।
- कार्बन टैक्स लागू कर पर्यावरण सुरक्षा के प्रयास।
- शरणार्थियों और अप्रवासियों के लिए उदार नीति।
इस्तीफे के कारण:
गिरती लोकप्रियता और जनता की नाराजगी:
महंगाई:
कनाडा में महंगाई ने ऐतिहासिक स्तर को छू लिया। आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें और आवास संकट ने जनता को ट्रूडो सरकार के खिलाफ कर दिया।
अप्रवासन और कट्टरपंथ:
- अप्रवासियों की बढ़ती संख्या और कट्टरपंथी ताकतों के उभरने ने सामाजिक असंतोष को बढ़ावा दिया।
कोविड-19 के बाद चुनौतियां:
- कोविड-19 के दौरान लागू की गई सख्त पाबंदियों और आर्थिक असंतुलन ने उनकी लोकप्रियता को और गिरा दिया।
पार्टी के भीतर असंतोष:
- लिबरल पार्टी के 24 सांसदों ने सार्वजनिक रूप से ट्रूडो के इस्तीफे की मांग की थी।
डिप्टी पीएम और वित्तमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने भी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
- ट्रूडो पर वित्तीय नीतियों को लेकर कई सांसद असहमति जता रहे थे
संसदीय अल्पमत और विपक्षी दबाव:
- ट्रूडो की लिबरल पार्टी 338 सीटों वाले हाउस ऑफ कॉमन्स में सिर्फ 153 सीटों के साथ अल्पमत में है।
- सहयोगी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) ने समर्थन वापस ले लिया।
विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी और NDP ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी की।
लिबरल पार्टी की चुनौतियां:
नेतृत्व का संकट:
ट्रूडो के इस्तीफे के बाद पार्टी को एक मजबूत नेता की तलाश है। विदेश मंत्री मेलानी जोली और डोमिनिक लेब्लांक जैसे नाम चर्चा में हैं।
जल्द चुनाव का खतरा:
- संसद का सत्र मार्च में शुरू होगा। लिबरल पार्टी को विश्वास मत का सामना करना पड़ सकता है।
ट्रूडो के इस्तीफे का भारत पर प्रभाव:
- भारत-कनाडा संबंधों में सुधार की संभावना:
- ट्रूडो के खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरम रुख के कारण भारत और कनाडा के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे।
- सत्ता परिवर्तन के बाद राजनयिक संबंधों में सुधार हो सकता है।
- वीजा नीति में बदलाव:
- नई सरकार भारतीय नागरिकों के लिए वीजा नीति को सरल बना सकती है।
- ट्रूडो सरकार के दौरान भारत से अप्रवासन में कमी आई थी।
- व्यापार और निवेश:
- भारत और कनाडा के बीच व्यापारिक समझौते पर फिर से चर्चा तेज हो सकती है।
- कनाडा के प्राकृतिक संसाधनों और कृषि क्षेत्र में भारतीय निवेश बढ़ सकता है।
आगे का रास्ता:
अल्पमत की सरकार:
लिबरल पार्टी को विश्वास मत जीतने के लिए नई रणनीति बनानी होगी।
विपक्ष की मजबूती:
कंजरवेटिव पार्टी की लोकप्रियता बढ़ रही है। सर्वे के अनुसार, चुनाव होने पर कंजरवेटिव पार्टी बहुमत प्राप्त कर सकती है।
जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा कनाडा के लिए एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मोड़ है। उनकी उदारवादी नीतियां और प्रगतिशील दृष्टिकोण लंबे समय तक याद किए जाएंगे। हालांकि, महंगाई, कट्टरपंथ और पार्टी के भीतर असंतोष ने उनके नेतृत्व को कमजोर कर दिया। अब यह देखना होगा कि कनाडा की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है और भारत के साथ उसके संबंध कैसे आकार लेते हैं।
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विशेष संवाददाता:
मनोज शुक्ल