Sunday , December 29 2024

मान्‍यता है कि यहीं से पांडव स्‍वर्ग के लिए गए थे

Mahabharata-warउत्तरकाशी। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) में आने वाले पर्वतारोहियों का प्रशिक्षण स्थल द्रौपदी का डांडा (डीकेडी) प्रकृति का स्वर्ग है। मान्यता है कि यहीं से पांडव स्वर्ग के लिए गए थे।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से सबसे निकट पड़ने वाला ग्लेशियर डोकरणी बामक भी डीकेडी क्षेत्र में ही है। यहां पर्यटकों के लिए ट्रैकिंग, कैंपिंग से लेकर पर्वतारोहण तक के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। यही कारण है कि निम ने भी इस क्षेत्र को बेसिक और एडवांस ट्रेनिंग के लिए चुना है।

समुद्रतल से 18,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित द्रौपदी का डांडा जाने के लिए पर्यटकों को उत्तरकाशी से 43 किलोमीटर सड़क मार्ग से भटवाड़ी पहुंचना पड़ता है। यहां भागीरथी नदी को पार कर 5500 फीट की ऊंचाई पर स्थित भुक्की गांव होते हुए छह किलोमीटर की दूरी पर तेल कैंप है। इस क्षेत्र में बांज, बुरांस, देवदार आदि का घना जंगल है, जिसे पार कर 10 किलोमीटर की दूरी पर गुर्जर हट पड़ता है।

यहां गुर्जरों की छानियां हैं। गुर्जर हट से चार किलोमीटर की दूरी पर बुग्याली क्षेत्र में बेस कैंप पड़ता है और यहां से चार किलोमीटर आगे एडवांस बेस कैंप। डोकराणी बामक ग्लेशियर यहीं से शुरू होता है। यहां तक पर्यटक आसानी से पहुंच सकते हैं। डोकराणी बामक ग्लेशियर उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 67 किलोमीटर दूर है, जिसे उत्तरकाशी का सबसे निकटवर्ती ग्लेशियर को माना जाता है। इसके साथ ही इस क्षेत्र में भरल, भालू, स्नो लेपर्ड आदि वन्य जीव भी आसानी से दिख जाते हैं।

इसलिए निम की पसंद बना डीकेडी

द्रौपदी का डांडा जिला मुख्यालय से 65 से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसी कारण निम ने बेसिक व एडवांस कोर्स के लिए इस क्षेत्र का चयन किया। यहां आसानी से राशन व सब्जी की आपूर्ति हर दूसरे दिन हो जाती है। फिर डोकरणी बामक ग्लेशियर पर्वतारोहण के अभ्यास को भी अच्छा है। 18600 फीट की ऊंचाई पर द्रौपदी का डांडा की चोटी पर्वतारोहियों के लिए सबसे उपयुक्त है। एवरेस्ट विजेता विष्णु सेमवाल बताते हैं कि ट्रैकिंग, कैंपिंग व पर्वतारोहण के लिए सबसे निकटवर्ती क्षेत्र डीकेडी है। हालांकि, पर्यटकों को डीकेडी के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन जो एक बार यहां आया, बार-बार आने के लिए उत्सुक रहता है।

स्वर्गारोहणी के लिए आगे बढ़े थे पांडव

मान्यताओं के अनुसार स्वर्गारोहणी के समय पांडव इसी क्षेत्र से होकर आगे बढ़े थे। पूरा हिमालयी क्षेत्र नजर आने से इस पर्वत का नाम द्रौपदी का डांडा रखा गया। निम ने जब से इस शिखर पर पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देना शुरू किया, संक्षेप में इसका नाम डीकेडी कर दिया। आज भी भटवाड़ी, भुक्की गांव के ग्रामीण इस पर्वत की पूजा करते हैं। वे इसकी तलहाटी में स्थित खेड़ा ताल को नाग देवता का ताल मानते हैं। हर वर्ष सावन में ग्रामीण इस ताल में पूजा-अर्चना करने के लिए जाते हैं।

E-Paper

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com